गंगानगर जिलै रौ राजस्थानी साहित्य / डॉ. नीरज दइया

राजस्थानी साहित्य नै जाणण खातर आपां पाखती अेक मारग है कै राजस्थान रै जिलावार साहित्य नै जाणां, प्रवासी राजस्थानी साहित्यकारां नै जाणां। साहित्य नै जिला रै आधार माथै बांटण मांय जठै अेक सुभीतौ निगै आवै, बठै अेक मोटी अबखाई आ हुवै कै किणी साहित्य नै जिलै, संभाग अर देस री सींव मांय बांधणौ बेजा बात है। जिकौ किणी सींव मांय बंध जावै बो साहित्य नीं हुवै। साहित्य तौ सदीव सीवां नै उळांध’र आगै बधण-बधावण रौ काम करै। गंगानगर जिलै रै राजस्थानी साहित्य पेटै असल मांय आपां उण साहित्यकारां अर साहित्य री चरचा करलां जिका आपरी कलम रै पाण गंगानगर जिलै री सीवां रौ बंधण छोड़’र राजस्थानी साहित्य री साख बधावण पेटै लगोलग काम करियौ है। अै लेखक कवि रचनाकार आखै राजस्थानी साहित्य मांय गंगानगर जिलै रौ नांव कर रैया है।
बीकानेर रै महाराजा गंगासिंहजी रै नांव माथै गंगानगर बण्यौ अर अबै साहित्य रै सीगै कवि-कथाकार श्री मोहन आलोक रै नांव सूं राजस्थान मांय ई नीं आखै देस मांय गंगानगर आज जाणीजै। अेक बगत हौ जद इतवारी पत्रिका मांय छपण आळा डांखळां सूं गंगानगर अर मोहन आलोक री घणी चरचा रैयी। राजस्थानी पत्र-पत्रिकावां री बात करां तौ ‘‘गोरबंद‘‘ पत्रिका रै पाण गंगानगर चरचा में रैयौ। इण ओळी में दर ई अतिश्योक्ति अंलकार कोनी कै गंगानगर जिलै री कीरत साहित्य रै इतिहास मांय सॉनेट अर वनदेव अमृता महाकाव्य लिखण आळा महाकवि मोहन आलोक रै पाण मानीजैै। ग-गीत (मोहन आलोक), सिमरण (संतोष मायामोहन) अर मीरां (मंगत बादल) काव्य पोथ्यां नै साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिलणौ गंगानगर जिलै रै खातै ओळख रा थिर अैनाण है। ’’दसमेस’’ महाकाव्य रा महाकवि श्री मंगत बादल रायसिंह नगर रौ नांव चमकायौ। इण हलकै मांय राजस्थानी भाषा साहित्य अेवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर रौ सूर्यमल्ल मीसण सिखर पुरस्कार इण पोथी नै मिल्यौ। पुरस्कार तौ केई बीजा ई है जिका इण हलकै रै रचनाकारां नै मिल्या। अठै रा रचनाकार राजस्थानी, हिंदी अर पंजाबी आद भासावां मांय अेकठ समान गति सूं साहित्य सिरजण कर रैया है।
कह सका कै इण धरती नै ओ वरदान है- कै अठै लूंठा साहित्यकार हुया। आखै मुलक मांय इणी भौम री ओळख इतिहास मांय रचण पेटै अेक नांव आपां घणै-घणै आदर सूं लेवां मानीता श्री चंद्रसिंगजी बिरकाळी रौ। साहित्य मांय लू अर बादळी जैड़ै रितु काव्य रा जनक चंद्रसिंह बिरकाळी जी री आ भौम है। कांई राजस्थानी साहित्य रौ इतिहास मानीता कथाकार श्री करणीदान जी बारहठ अर रामकुमार ओझा नै कदैई बिसराय सकैला? अठै रा कवियां मांय सत्यनारायण अमन रौ नांव घणै मान सूं लियौ जावै, आप आकाशवाणी मांय हा अर मंचयी कविता अर साहित्य सूं जन जुड़ाव पेटै लांठौ काम करियौ। कहाणी री बात करां तौ परलीका गांव रै कथाकारां री विगत अर कविता री बात करां तौ श्री ओम पुरोहित कागद री काव्य-जातरा जगजाणी है। श्री दीनदायल शर्मा री टाबर-टोळी सीरीज री पोथ्यां असल मांय बाल साहित्य रौ आं रौ अेक टोळौ है। पीळीबंगा री ओळख निशांत जी सूं है। अबै तौ गंगानगर अर हनुमानगढ़ दोय न्यारा-न्यारा जिला है, अर खरै खरी बात कैवां तौ बीकानेर संभाग मांय आं दोनूं जिला रौ आपरौ न्यारौ-न्यारौ रूतबौ है।
सियाळै मांय अठै सरदी बेसी पड़ै अर ऊनाळै मांय गरमी। अठै रा रैवासी सगळा सूं बेसी लूवां झेलै। जिलावार साहित्य री बात करां तद आपां री दीठ अठै री खासियता माथै रैवणी चाइजै। लेखक रै आसै-पासै रौ लोक-जीवण अर पर्यावरण ई मेहताऊ हुया करै। लोकरंग री बात साहित्य मांय घणी महताऊ मानीजै। जे आपां पंजाब रै नजीक हां तौ पंजाबी भासा रै नजीक हां। राजस्थानी भासा रै ठस्कै साथै पंजाबी भासा री खुसबू अठै लोक जीवण मांय आपां देख सकां। दाखलै रूप अठै कथा-संग्रै ‘‘मोहन आलोक री कहाणियां’’ री अेक कहाणी रिक्सै आळौ री चरचा करां। इण कहाणी मांय दो-तीन पंजाबी संवाद है, जिका इण इलाकै रै रंग अर खुसबू नै जाणै आपां री आंख्यां सामीं ऊभी कर देवै। इण कहाणी मांय जिकौ लोकरंग है बो ई इण कहाणी नै अेकर बांच्या आपां री ओळूं मांय आ सदीव खातर जीवती रैवै। साहित्यकार पाखती आपरौ खुद रौ कांई हुवै, उण री भासा अर विचार। फगत बुणगट रै कारण कोई रचना मौलिक नीं हुया करै। मौलिक हुवै उण बुणगट मांयलौ चिंतन, विचार, भासा अर बगत बगत री आपरी आधुनिकता। इण दीठ सूं श्री जनकराज पारीक री सिकार कहाणी उल्लेखजोग मानीजी। कोई रचनाकार कम लिखै अर कोई बेसी, पण जे रचना मांय जान हुवै तौ कम लिखण आळौ इतिहास मांय अपारौ नांव मांड सकै, इण ढाळै अठै रै साहित्य रा इतिहास पुरुस है श्री जनकराज पारीक। मोहन आलोक री काव्य जातरा री मेहतावू पोथी बानगी मांय पारीक जी री आपां आलोचना दीठ देख सका।
इण जिलै माथै आलोचना री निजर कमती हुवण रै कारण ई मोहन आलोक अर डॉ. मंगत बादल आद लेखक कवियां रौ समग्रता अर संपूर्णता मांय पूरौ मूल्यांकन ई कोनी हुयौ। राजस्थानी रा चावा ठावा रचनाकार डॉ. मंगत बादल गद्य अर पद्य में समान गति सूं लिखै। महाकाव्य जिकौ कवि लिखै बो ई महाकवि बाज,ै तौ इण जिलै मांय दोय महाकवि है। श्री मोहन आलोक री बात आप करी अबै महाकवि डॉ. मंगत बादल री बात करां। महाकवि बादल री काव्य-पोथी मीरां मांय जिकी सहजता, सरलता अर बुणगट री आधुनिकता है बा उणा री खुद री मौलिकता है। मीरां नै अेक नवै रंग रूप मांय देखण-समझण री तजबीज अर भासा मांय सरलता-सहजता साथै आधुनिकता आपां देख सकां। कवि अेक आंख आपरै पाठ मांय इण ढाळै रचै का कैवां बांचणियां नै बा आंख सूंपै जिण रै पाण अेक लोकचावी नायिका मीरां नूवै रंग-रूप मांय दीसै। इणी ढालै महाकवि मंगत बादल रौ गुरु गोविंदसिंह जी रै जीवण-चरित माथै आधारित महाकाव्य ’’दसमेस’’ मांय आपां नै छंद री विविधता, भासा री नवीनता अर लोकचावै कथ्य रौ सांगोपांग निभाव देखण नै मिलै।
साहित्य अकादेमी सूं सम्मानित कवयित्री श्रीमती संतोष मायामोहन री काव्य पोथ्यां सिमरण अर जळ-विरह री छोटी-छोटी कवितावां मांय जिकौ चिंतन अर नारीवादी सुर सामीं आवै बो समूळै राजस्थानी साहित्य सारू साव नूवौ है। आपरै आखती-पाखती री दुनिया नै अेक नूवै नजरियै अर अंदाज सूं देखण-परखण-समझण री कवितावां मांय जोरदार तजबीज संतोष री कवितावां मांय देखी जाय सकै।
गंगानगर जिलै मांय घुमता-फिरता साहित्यकारां का प्रवासी पखेरूवां दांई आवण-जावण आळा री लेखकां री बात करां। श्री प्रमोद कुमार शर्मा अर डॉ. नीरज दइया आद रै साहित्य री पेटै आ बात तौ कैयी जाय सकै कै अठै रैय परा जिकौ काम आं लेखक-कवियां रै हाथां हुयौ बो इणी जिलै रै खातै मांडणौ चाइजै। आं रचनाकारां रौ जिकौ कवितावां, कहाणियां, आलोचना अर संपादन पेटै जिकौ काम सामीं आयौ उण री परख हुवणी चाइजै। कोई इण धरती माथै आय’र जिकी सिरजण-साधना करै उण रौ जस तौ इण धरती रौ ई है। प्रमोद कुमार शर्मा राजस्थानी कविता अर कहाणी पेटै अेक भरोसैमंद नांव है अर सूरतगढ री धरती माथै रैवतां थकां आप केई रचनावां लिखी। मोहन आलोक री काहाणियां (संचै नीरज दइया), आलोचना रै आंगणै, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां (संचै नीरज दइया), देवां री घाटी (भोला भाई पटेल, उल्थौ नीरज दइया) सबद-नाद (संचै-उल्थौ नीरज दइया) अर कविता कोश आद पेटै हुयै काम री विगत बाबत खुद रौ खुद ई कीं कैवणौ बेजा बात हुवैला।
भासा आंदोलन सूं जुड़िया श्री मनोज कुमार स्वामी विविध विधावां मांय लेखन करियौ है। पत्रकारिता, बाल साहित्य, कहाणियां, कवितावां, नाटक अर उल्थै पेटै मनोज कुमार स्वामी आपरी पीढी मांय सगळा सूं बेसी संजीदा अर जूझारू रचनाकार मानीजै। काचौ सूत, बेटी, रिचार्ज आद पोथ्यां रै पाण सूरतगढ़ री साख बधावण रौ काम स्वामी करियौ है।
इण हलकै रै केई रचनाकारां री पोथ्यां राजस्थानी भाषा साहित्य अेवं संस्कृति अकादमी बीकानेर रै आंशिक आर्थिक सैयोग सूं छपी है। नंदकिशोर सोमानी रौ व्यंग्य संग्रह फाईल री आत्मकथा अर हरिमोहन सारस्वत रौ कविता संग्रै ’’गम्योड़ा सबद’’ साहित्य मांय आपरी ठावी ठौड़ राखै। आं दोनूं रचनाकारां री भासा अर बुणगट घणी असरदार कैयी जाय सकै। आं री पोथ्यां सूं भरोसौ अर आस जागै कै आवण आळै बगत मांय अै साहित्य रै सीगै लगोलग काम करैला, आं रौ जस इतिहास लिखैला।
इणी बरस ’’राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां’’ संग्रै रौ संपादन श्याम जांगिड़ करियौ है उण मांय केई नामी रचनाकारां बिच्चै नंदकिशोर सोमानी री कहाणी ’’अळगाव’’ देखी जाय सकै अर आपरी पोथी पाईल री आत्मकथा मांय परिचय देखां तौ अप्रकाशित पोथ्यां मांय ’’अळगाव अर दूजी कहाणियां’’ रौ नांव दियौ है। बरस 2004 मांय पछै हाल तांई सोमानी रौ कहाणी संग्रै नीं आवणौ, आं रै धीरज नै आपां सामीं खोलै। रचना मांय रचनाकार रौ धीरज घणौ जरूरी हुया करै। रचना सारूं प्रेरणा अर प्रोत्साहन ई जरूरी हुया करै। रचना अर रचनाकार री किणी ढाळै री खथावळ रचना रै असर नै कमती करै।
’’मुकनौ मेघवाळ अर दूजी कहाणियां’’ रा कथाकार रामेश्वर ’गोदारा’ ग्रामीण री आ पोथी साहित्य अकादेमी, दिल्ली सूं प्रकासित हुई अर घणी चरचा मांय रैयी। इण संग्रै री कहाणी ’’मछली’’ माथै घणी चरचा हुई अर आ आप री प्रतिनिधि कहाणी मानीजै। आं रौ दूजौ कहाणी संग्रै ई छप चुक्यौ है अर राजस्थानी कथा री परलीका स्कूल रै इण कहाणीकार सूं घणी उम्मीदां है। इणी हलकै रै कवि दुष्यंत री कविता-पोथी उठै है रेत राग मांय घणी संभावनाचां देखी जाय सकै पण आ जातरा लगोलग चालू रैवै तद ई कवि कविता जातरा मांय आपरी पेठ थापित कर सकैला। राजस्थान मांय आधुनिकता रै साथै हुयै बदळावां रौ असर इण संग्रै री केई कवितावां मांय आप खास तौर सूं देख-परख सकां।
लघुकथा री बात करां तौ  रामधन अनुज री मांय पोथी ’’काळी कनेर’’ उल्लेखजोग है, तौ नंदलाल वर्मा सूं लघुकथा विधा नै घणी उम्मीद है। उम्मीद री बात करां तौ युवा कविता पेटै कृष्ण बृहस्पति सूं घणी उम्मीद करी जाय सकै। पोथी ’’डांडी सूं अणजाण’’ रै कवि सतीश छीम्पा री बेगी आवण वाळी पोथी सूं घणी उम्मीदां अर आसावां है। जोगासिंह कैत, भागीरथ रेवाड अर बीरूराम चांवरिया रौ राजस्थानी सूं प्रेम इणी सूरतगढ़ मांय आपां देख सकां। युवा कवि विष्णु शर्मा री कवितावां आवणी बाकी है।
अठै श्री करणीदान सिंह राजपूत जिसा राजस्थानी रा धीर गंभीर पाठक अर लेखक है जिका रौ कहाणी अर कविता संग्रै आवणौ है, तौ कृष्ण कुमार ’आशु’ जिसा लेखक है जिका किणी संकोच रै रैवता कमती लिखै। अलीमोहम्मद परिहाड़ जिसा संपादक अर पृथ्वीराज गुप्ता जिसा अनुवाद है, जिका रौ साहित्य पेटै घणौ समरपण भाव देख्यौ जाय सकै। राजेश चढ्ढा जिसा दमदार आवाज रा घणी है जिका नै खुद री राजस्थानी मांय संकौ रैवै कै आ म्हैं अर म्हारै आसवाड़ै-पसवाड़ै बोलै जिकी राजस्थानी है का कोनी। आज आपां री भासा अर साहित्य जिण मुकाम माथै है अर आपां जिण मजल रै साव नजीक हा, इण बगत मांय राजस्थानी पेटै सगळा रौ जुड़ाव घणौ-घणौ जरूरी है।
 डॉ. नीरज दइया
(10 फरवरी, 2012 :  गंगानगर जिला सम्मेलन, सूरतगढ़)

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