

संग्रै री कीं कहाणियां में नवा प्रयोग ई करीज्या है। अठै कहाणी नै न्यारा
न्यारा टुकड़ा मांय अलायदा सिरैनांव राखता थका जाणै कोलाज सूं कहाणी मांय
प्रयोग करै। इण दीठ सूं “आरती प्रियदर्शिनी री गली” अर “उदासी रो कोई रंग
कोनी हुवै” खास उल्लेखनीन है। पोथी रै सिरै नांव कहाणी ‘च्यानण पख’ में डायरी शैलो रो प्रयोग है बठै ई युवा सोच अर संबंधां में लुगाई जात री ओळखाण अर आपै रो सवाल ई मेहतावू बण जावै। अठै बात करां कथेसर में छपी कहाणी “आरती अग्रवाल री गळी” री। उण कहाणी रो नांव बदळ’र संग्रै में अग्रवाल री ठौड़ प्रियदर्शिनी कर दियो है। कहाणी आकाशावाणी में हुयै किणी अजोगै कारनामै नैं उजागर करै, तो हेत रा ई केई रंगां नैं राखै। इणी ढाळै री अेक दूजी उल्लेखजोग कहाणी ‘उदासी रो कोई रंग कोनी हुवै’ मानी जावैला। बदळतो बगत अेक साच है अर आपां रै आसै-पासै रा दीठावां बिचाळै दौड़ती-भागती कहाणी नैं कागद माथै थिर करणी अेक कला है। किणी जथारथ सूं खवर बणै अर कहाणी ई बण सकै। किणी जीवतै-जागतै मिनख-लुगाई का विभाग सूं जुड़ी घटना सूं कहाणी लिखणो विवाद रो विषय बण सकै, आ विचारतां ई कहाणीकार व्यक्तिगत सींव सूं पात्र नैं बारै काढ’र आरती अग्रवाल नैं आरती प्रियदर्शिनी लिखण रो मतो करियो हुवैला।
कहाणियां में देख्यो-सुण्यो-भोग्यो साच भेळै गोड़ै घड़ी वातां थका ई कहाणीकार जिण किणी घटना-प्रसंग नै बखाणै उण नै साच रै रूप चित्रात्मक-बिम्बात्मक भासा रै पाण हियै साच रै रूप पूगावण री खिमता ई राखै। आं कहाणियां में जुदा-जुदा कला माध्यमां जियां- चित्रकला, संगीत आद सूं जुड़ी जिंदगी मिलै। अठै आंचलिकता साथै उण रो मोटो फलक उल्लेखजोग कैयो जावैला। चित चढै जिसैआवरण अर चोखी छपाई रै पाण इण पोथी रै मारफत आपरी कहाणियां सूं लढ़ा समकालीन राजस्थानी युवा कहाणी नै जाणै च्यानण पख में लावै।
कहाणियां में देख्यो-सुण्यो-भोग्यो साच भेळै गोड़ै घड़ी वातां थका ई कहाणीकार जिण किणी घटना-प्रसंग नै बखाणै उण नै साच रै रूप चित्रात्मक-बिम्बात्मक भासा रै पाण हियै साच रै रूप पूगावण री खिमता ई राखै। आं कहाणियां में जुदा-जुदा कला माध्यमां जियां- चित्रकला, संगीत आद सूं जुड़ी जिंदगी मिलै। अठै आंचलिकता साथै उण रो मोटो फलक उल्लेखजोग कैयो जावैला। चित चढै जिसैआवरण अर चोखी छपाई रै पाण इण पोथी रै मारफत आपरी कहाणियां सूं लढ़ा समकालीन राजस्थानी युवा कहाणी नै जाणै च्यानण पख में लावै।
– नीरज दइया
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च्यानण पख (कहाणी संग्रै) मदन गोपाल लढ़ा
प्रकासक- कलासन प्रकाशन, बीकानेर, संस्करण- 2014, पाना-80, मोल- 60/-
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