राजस्थानी रा चावा-ठावा कहाणीकारां मांय भंवरलाल ‘भ्रमर’ (1946), मीठेस
निरमोही (1951), अरविंद सिंह आशिया (1964) अर मदन गोपाल लढ़ा (1977)
कहाणी-कला री दीठ सूं मेहतावू मानीजै। आं च्यारूं कहाणीकारां बाबत अेकठ बात
करियां लगैटगै पूरी आधुनिक राजस्थानी कहाणी रै अेक सांवठै दीठाव री बात
हुय सकै। हिंदी-साहित्य मांय दसकवार बात करण रो चलस रैयो है। जलम बरस री
दीठ सूं देखां तद भंवरलाल ‘भ्रमर’ आजादी सूं अेक बरस पैली जलमिया। इण सीगै
नैं फळावां तो आं च्यारूं कहाणीकारां नैं दसक रै हिसाब सूं अेक अेक सूं
ऊपरलै पगोथियै राख सकां। दोय बीसी रै इण बगत नैं साठोत्तरी हिसाब सूं देखां
तो दोय-दोय कहाणीकारां रो जोड़ो करीज करै। असल में कहाणीकार रै जलम री ठौड़
कहाणी बाबत बात करां तो उणा री कहाणी का कहाणी-संग्रै रै जलम सूं बात करी
जावणी चाइजै। भंवरलाल ‘भ्रमर’ रा तीन कहाणी संग्रै- तगादो (1972), अमूजो कद
तांई (1976), सातूं सुख (1995) ; मीठेस निरमोही रो अेक कहाणी संग्रै-
अमावस, अेकम अर चांद (2002) ; अरविंद सिंह आशिया रा दोय कहाणी संग्रै- कथा :
अेक (2001), कथा : दोय (2009) अर मदन गोपाल लढ़ा रो अेक कहाणी संग्रै-
च्यानण पख (2014) प्रकाशित है। आ ओळी कविता मांय रूपळी लाग सकै कै कैवां
आपां आं सात कहाणी-पोथ्यां नैं राजस्थानी कहाणी रै आभै रूपाळो इंदर-धनुस
कैय सका. पण कहाणी-आलोचना रै सीगै इण ढाळै री ओळियां रो कोई अरथ कोनी हुवै।
राजस्थानी खातर ओ शोध रो विसय है कै आं कहाणीकरां री पैली कहाणी किसी ही
अर कठै-कद छपी। पैलै कहाणी संकलन सूं कीं बरसां पैली आं कहाणीकारां पैली
कहाणी लिखी हुवैला, इण बाबत कोई जाणकारी आं कहाणी-संकलनां में कोनी मिलै।
आलोचना रो जलम किणी रचना रै पाठ सूं ई हुवै। किणी रचना री परख पाठक अर
आलोचक दोनूं ई करै, पण आं दोनूं मांय घणो आंतरो हुवै। पाठक किणी रचना नैं
पूरी बांचै अर ना बांचै का अधबिचाळै छोड़ सकै। जद कै आलोचना री जबाबदेही अर
जिम्मेदारी दोनूं हुवै, तद पूरी पठनीय-अपठनीय रचना रो पाठ उण खातर जरूरी
हुय जावै। केई बार ओ पाठ केई बार करणो पड़ै। कैवणी चावूं कै फोरी तौर माथै
कैवणियां कीं पण कैय सकै पण आलोचना री सजगता रचना रै पूरै पाठ सूं जुड़ियोड़ी
हुवै। आं चार कहाणीकारां सात पोथ्यां नैं दूसर-दूसर बांचतो केई-केई बातां आ
कहाणीकारा री कहाणी-कला पेटै विचारतो रैयो। आं कहाणीकारां री केई कहाणियां
मांय रमतो रैयो, अर केई कहाणियां म्हनै रमावती रैयी। जद कहाणी रा पात्र
आपां रै अंतस खुद आपरी कहाणी कैवण लागै तद समझां कै कहाणी कला री दीठ सूं
पूरी खरी है। इण ढाळै री कहाणी आपरै जस नैं थापित करती, बगत री सींव छोड़’र
बरसां जीवै।
कहाणी कोई चोखी का भूड़ी कोनी हुवै, चोखो अर भूड़ो हुवै उण रो रचाव का पाठ।
कहाणी लिखणी अेक कला है अर हरेक कहाणीकार आपरी कला सूं न्यारै-न्यारै पोत
री कहाणी नैं रचण री आफळ करै। शिक्षा विभाग राजस्थान री पोथी ‘आहूतियां’ रो
संपादन करतां डॉ. अर्जुनदेव चारण लिख्यो- “कला में पूरणता अर प्रफेक्सन
जैड़ी कोई चीज नीं हुवै, अठै तो मछली री आंख खातर हरेक रो आपरो तीर अर
निसाणो हुवै।” सो कैवणो आ चावूं कै च्यारूं कहाणीकारां मांय कोई किणी सूं
कमती का बेसी कोनी, अर जिका बाबत अठै बात नीं करां बै ई कमती कोनी। सगळा री
आपरी ठावी ठौड़ थकां कैय सकां कै हरेक रो कहाणी-कला ग्राफ अेकसार कोनी। खुद
भंवरलाल भ्रमर अर बां री कहाणी-जातरा माथै विचार करतां म्हारो मानणो रैयो
कै बगतसर आलोचना आपरो काम कोनी करियो इण कारण सूं राजस्थानी रो अेक बोजोड़
कहाणीकार आपरो बो मुकाम हासल नीं कर सक्यो जिण रो बो हकदार हो।
अकादमी सूं छप्यै प्रतिनिधि कहाणी-संकलन ‘उकरास’ (1991) में संपादक
कवि-कहाणीकार सांवर दइया जद भ्रमर री ‘बातां’ कहाणी रो चयन करियो तो जाणै
इण कहाणी री कोई गुमियोड़ी चाबी लाधगी। मूळ कहाणी रै प्रकाशन पछै लगैटगै
बीस बरसां रो मून रैयो। इण नैं जोधपुर रै कथा समारोह (1995) मांय वाजिब मान
मिल्यो, जिको 1972 पछै मिलणो चाइजतो हो। कहाणी-आलोचना री गफलत रा केई कारण
रैया। चावा-ठावा लोककथाकार विजयदान देथा तो उण टैम भुंवाळी खायग्या- बां
संयोजक कवि-कहाणीकार मीठेस निरमोही नैं म्हारै साम्हीं घणै अचरज सूं
बूझ्यो- ‘भंवर! आ कहाणी कद लिखी?’ बिज्जी घणो अळोच कीनो कै इण सांतरी कहाणी
री पैली गिनार क्यूं कोनी हुई। इणी ढाळै सवाल रूप आपां विचार कर सकां कै
मीठेस निरमोही जिसै कहाणीकार री साव कमती कहाणियां आवण रै लारै कांई कारण
रैया। बगत री जरूरत समझा अर कहाणी रै विकास अर विगसाव खातर आपां इक्कीसवी
सदी रा चावा-ठावा युवा कहाणीकारां मांय अरविंद सिंह आशिया अर मदन गोपाल लढ़ा
जिसा कहाणीकारां अर कहाणियां री बगतसर ओळख-अंवेर करां-करावां।
अठै सामिल आं च्यार कहाणीकारां नैं राजस्थानी रा सिरै कहाणीकारां बिचाळै
हरावळ केई कारणां सूं कैया जाय सकै। इण ओळी री साख मांय आं च्यार
कहाणीकारां री कहाणियां सूं म्हैं बदळतो बगत अर दीठावां बिचाळै दौड़ती-भागती
सदी रा केई-केई चितराम आपरै साम्हीं राखणा चावूं। कहाणी असल मांय बदळतै
बगत नैं अंवेरै। आज जिका दीठावां सूं आपां धिरियोड़ा हां, का कैवां कै जिका
दीठाव आपां रै ओळै-दौळै रैवै बां दीठावां रै बिचाळै दौड़ती-भागती सदी री
पिछाण आज री कहाणी करावै। बगत री बारखड़ी आ कै बगत भागतो जाय रैयो है अर इण
दौड़तै-भागतै बगत नैं कोई थाम नीं सकै। फगत कहाणी मांय बगत नैं राख सकां, कै
उण री साख आवण वाळी पीढियां खातर अंवेरां। कहाणी जद आ साख अंवेरै तद बगतसर
आलोचना नैं इण साख रा गीत गावणा चाइजै।
कथेसर रा संपादक कहाणीकार रामस्वरूप किसान कहाणी विकास-जातर बाबत बात करता
भंवरलाल ‘भ्रमर’ बाबत लिख्यो- “राजस्थानी रा लांठा कहाणीकार भंवरलाल
‘भ्रमर’ सायना में सै सूं सिरै, झीणी संवेदना रा कहाणीकार है।” (कथेसर-7
अक्टूबर-दिसम्बर, 2013) भ्रमरजी बरस 1970 सूं पैली रा कहाणीकार है। अै
कहाणियां अर ओ बगत कहाणी-इतिहास में इण खातर महतावू है कै इणी बगत रै
आसै-पासै नवी कहाणी आपरा पग मांड़िया। भ्रमरजी रै साथै वां रा समकालीन
कहाणीकार सांवर दइया, मोहन आलोक अर नंद भारद्वाज आद वां दिनां मरुवाणी,
हेलो, हरावळ जिसी पत्रिकावां सूं नवी कहाणी नैं मजबूत कर रैया हा। आलोचना
में हासलपाई लगावणिया घणा है, इणी खातर म्हैं कहाणी आलोचना पोथी रो नांव
‘बिना हासलपाई’ राख्यो अर इण नांव री साख इण ओळी सूं करावूं- कीरत में नवी
कहाणी रा हरावळ कहाणीकार सांवर दइया मानीजै, पण अठै ओ उल्लेख जरूरी लखावै
कै भंवरलाल ‘भ्रमर’ राजस्थानी में घणो पैली लिखणो चालू करियो।
भंवर लाल ‘भ्रमर’ री कहाणी-जातरा माथै विगतवार विचार करां तो ‘तगादो’ सूं
‘सातू सुख’ तांई सैंतीस कहाणियां रो दरसाव आपां साम्हीं बणै। ‘उपरलो पासो’
नांव सूं कहाणी-संग्रै आवणवाळो है। कहाणीकार भ्रमरजी री च्यार व्हाली
कहाणियां- ‘बातां’, ‘उड़दो’, ‘तगादो’ अर ‘ढोंग’ री बात करां। अमूजो कद
तांईं री भूमिका सूं इयां पण कैयो जाय सकै कै कहाणीकार मुजब अै व्हाली अर
टाळवीं कहाणियां है। आं कहाणियां सूं कहाणीकार रो मोह रैयो है, तद ई आं नैं
दूजै संग्रै में दूसर सामिल करीजी ही। खरैखरी अै कहाणियां खुद मोह करै
जैड़ी है। राजस्थानी कहाणी इतिहास में आं रै मुकाबलै री आं जिसी दूजी
कहाणियां कोनी मिलै। आं कहाणियां नैं भ्रमरजी री प्रतिनिधि कहाणियां मानी
जाय सकै।
भ्रमरजी री कहाणियां में बदळतै बगत में अरथ री मार सूं दूर-नैड़ै रा
सगा-संबंधी, अठै तांई कै घरू-खून रा रिस्ता ई तर-तर ठंडा पड़ता जाय रैया
है। कहाणी बातां अर तगादो में घर-परिवार में पसरतै मून री बानगी देखण नैं
मिलै। घर-घर ओ मून कियां-कठै पसरतो जावै इण रो ठीमर बखाण ई आपां आं
कहाणियां में देख सकां। उड़दो बाल-मनोविग्यान री कहाणी में नाटकीय भासा-पख ई
सरावणजोग है। अै कहाणियां नवी कहाणी री थरपणा री जमीन कमावणवाळी मानी जाय
सकै। बरसां पछै आज जद बजारवाद हावी हुवण सूं चीजां री कीमतां भलांई बदळगी
हुवै पण मूळ संवेदना मांय रत्ती भर ई फरक कोनी आयो। कहाणियां में बरतीज्या
आंक रिपिया-टका बदळ दिया जावै तो आं नैं आपां आज रै सिरजण भेळै समकालीन साच
नैं उजागर करणवाळी कहाणियां कैय सकां।
कहाणी ‘सातूं सुख’ नांव घणो सांकेतिक है, इण नांव में भ्रमरजी री पूरी
कहाणी-जातरा रो सूत्र जोयो जाय सकै। कहाणियां में दुख-दरद है, बिखो है,
बुढापो है, बगत री मार है, संस्कारहीणता है अर खरोखरी जिण नैं सुख कैवां उण
री धाप’र कमी आं कहाणियां में कहाणीकार दरसावै। नांव में व्यंजना सुख री
है, अर बो अरथ री मार सूं आधुनिक जीवण में सब सूं बेसी पछाड़ खा रैयो है।
सुख री उडीक है। सुख सपनो हुयग्यो है। संबंधां मांय खारास आवतो जाय रैयो
है। मिनख मसीन बणतो जाय रैयो है। मिनख नैं होस कोनी रैयो कै वो आपरी
परंपरावां सूं कीं सीखै। कठै तो बडेरा सात सुखां में सगळै सुख री बात
परोटता अर कठै गिणती रा कोई सात सुख ई हाथ कोनी रैया। लांबै बगत उपरांत ई
आज आं कहाणियां रो असरदार लखावणो ई आं कहाणियां री सफलता है।
मीठेश निरमोही अर अरविंद सिंह आशिया रो कहाणी-संग्रै इक्कीसवी सदी लागता
साम्हीं आवै। ’अमावस, अेकम अर चांद’ 2002 अर `कथा’ अेक 2001 रै मारफत परख
करणियां नैं जाण लेवणो चाइजै कै मीठेस निरमोही घणा पैली कहाणियां लिखणी
चालू करी। घणखरा कहाणीकार आपरै कहाणी संग्रै मांय बां कहाणियां रै कठै कद
किसी छपी बाबत जाणकारी नीं राखै, इण सूं बां नैं घणै बगत पछै देखां तद इण
ढाळै री चूक ई हुय सकै। इण खातर म्हैं आगूंच कैयो कै कहाणी विकास जातरा
मांय म्हैं जिण च्यार कहाणीकारां बाबत बंतळ करूं बै च्यार पगोथिया इण रूप
मांय मानो कै आं सूं कहाणी तर-तर डीगी हुवती जावै। अठै अखरावणी चावूं कै
अरविंद सिंह आसिया अर मदन गोपाल लढ़ा जिसै कहाणीकारां री अंवेर-आलोचना हुयां
आपरी परंपरा मांय आं रो उल्लेखजोग मुकाम ओळख सकालां।
मीठेस निरमोही री कहाणियां जनचेतना री अलख लियोड़ी बगत नैं अरथावती कहाणियां
इण खातर मानी जावै कै संग्रै ’अमावस, अेकम अर चांद’ रै मारफत कहाणीकार फगत
आपरै पात्रां नैं ई नीं, बांचणियां नैं ई हूंस सूंपै। ‘अमूझता आखर’ अर
‘हवा भांग भिळी’ दोनूं कहाणियां जठै पूरी हुवै उण बगत कहाणीकार गांधी बाबै
नैं बिचाळै लावै अर जिण हक खातर जूझ मांडै उण मांय गांधीवाद नैं पोखै। इण
सूं पैली री पूरी कहाणी मांय आजादी पछै रो बदळतो बगत देख सकां अर सगळा
दीठावां रै बिचाळै दौड़ती-भागती सदी थकां ई जूना रंग अर ठसका निजर आवै। इणी
ढाळै ‘गवाही’ कहाणी सूं कहाणीकार मदियै जिसै लोगां री जूझ नैं बिड़दावै। अठै
राज रै बदळाव पछै ई उण बदळाव री चावना पण देखी जाय सकै कै जिको आजादी पैली
सुपनो हो अर बो सुपनो फगत सुपनो ई रैयग्यो।
संग्रै री सिरैनांव कहाणी री छेहली ओळी- ‘क्यूं डेडी अबै तौ आप म्हांरै
दादी-दादौसा नैं ई घरां लेय आसौ नीं?’ पूरी कहाणी रा नवा अरथ उघाड़ै। मिनख
अर लुगाई सूं चालणियै परिवार मांय च्यार-माइतां री दुरगत नैं बखाणती आ
कहाणी बदळतै बगत अर दीठावां बिचाळै दौड़ती-भागती आखी सदी रो सांच साम्हीं
राखै। अेक बेटी आपरै मा-बाप अर सासु-सुसरा मांय जिको भेद करै, उण पेटै नवी
बुणगट मांय रचीजी आ अेक उल्लेखजोग कहाणी है। ‘बंधण’ कहाणी आपां री संस्कृति
नैं पोखणवाळी कहाणी है तो कहाणियां मांय गाळ्यां सूं आज रो बदळ्यो बगत अर
बदळती संस्कृति ई दीसै। ‘हीरा महाराज’ बदळतै बगत मांय ठस्योड़ै बगत रो दीठाव
राखै कै इण सदी मांय ग्यान-विग्यान अर संचार क्रांति रै उपरांय ई अजेस
गांवां मांय झाड़-फूंक अर ठगी रा गोरखधंधा चाल रैया है। गांव अर पटवारी नैं
साम्हीं राखै कहाणी ‘हलकै रो हाकम’ है, इण कहाणी में पटवारी रै अन्याव नैं
कहाणीकार दरसावै पण कहाणी रो मरम भींवलै री छोरी सूं संवेट लेवणो हो, जिण
सूं कहाणी अणूती लंबी नीं लगाती। जिसी करणी विसी भरणी रो पाठ पढावती आ
कहाणी पटवारी सूं बेसी भींवलै री छोरी री कहाणी बणती तो बेसी असरदारा कैयी
जावती। मीठेस निरमोही री कहाणियां री खासियत वां रा संवाद अर संवादां भेळै
साम्हीं आवतो जूण-जथारथ मान सकां। ‘छुटकारो’ कहाणी मांय पुलिस अर पत्रकार
री बदळती भासा बिचाळै मसीन हुवतै मिनख री पीड़ ई परतख परख सकां। इण बदळतै
बगत अर दीठावां रै बिचाळै दौड़ती-भागती सदी रो अेक सांच आपां री बदळती भासा
है।
अरविंद सिंह आसिया रै कहाणी संग्रै कथा अेक अर दोय छप्या। आं मांय कुल 31
कहाणियां मिलै। आप री कहाणियां में अंग्रेजी-हिंदी रो प्रयोग आज रै बगत नैं
साम्हीं राखण पेटै हुयो है। समाज में भासा रै जटिल स्वरूप सूं आपां आयै
दिन आम्हीं-साम्हीं हुवां। राजस्थानी कहाणी में भासा रै मारफत असल राजस्थान
नैं साकार करणो कोई अरविंद सिंह सूं सीखै। कथा अेक सूं कथा दोय में आवतां
आवतां कहाणी कला रो विकास दीसै अर जिण कहाणियां में साव कमती सबदां मांय
सांवटण री खथावळ लागै बा कथा दोय में पूगतां घणी ठीमर निगै आवै। कहाणियां
मांय प्रयोग है तो साथै ई साथै घिस्यै-पिट्यै विसय माथै कहाणी नीं लिख’र
नवा विसयां नैं बपरावण री समझदारी ई अठै देखी जाय सकै।
अरविंद सिंह आशिया री कहाणियां बेजोड़ इण खातर मानी जावैला कै चरित्रां अर
पात्रां री दीठ सूं इण ढाळै री कहाणियां राजस्थानी में कमती मिलै। कहाणी
आपरै मरम सूं अंतस मांय सदा सदा खातर जाणै कोई ठावी ठौड़ बणा लेवै। दाखलै
रूप कहाणी ‘हुंसरडाई’ री बात करूं तो इण कहाणी नैं बांचता बिचाळै अमर
कहाणीकार प्रेमचंद री कहाणी ‘ठाकुर का कुआं’ याद आवण लागै। सागण बो ई दीठाव
है अर लागै बावड़ी बाबड़ी नीं, बो ई सागी कूवो है। अबकी हलकू झोंपड़ै में
कोनी बो कूवै में है। बिज्जी री लोककथा ई आंख्यां साम्हीं आवै जिण में कूवै
माथै धनगैलो माणस खुद रै बेटै रो ई भख लेय लेवै। आशिया री कहाणी रो अंस
आपरी निजर करूं- “जितरे तो लारै गांम रै चौकीदार रो फटकारो सुणीज्यो- “कुण
है रे ओ बावड़ी कनै?” अर बिण रै हाथ सूं बंधणो छूटग्यो। जतना झूंपड़ा कनी
दौड़ी। ठेठ झूंपड़ा में वड’र जक खायो। बारै कुत्तां रो कुरळावणो वत्तो व्है
गियो हो।” (कथा अेक पेज 16)
कहाणी ‘हुंसरडाई’ में बीछूड़ी री जोड़ी नैं पूरी करण रो जिको कळाप है उण सूं
बेसी घणी-लुगाई रो प्रेम अर जीवण री अबखायां रो चितराम, जिण नैं कहाणी बिना
कीं कैयां बांचणियां साम्हीं जाणै खोल’र धर देवै। हीमतो नीं रैयो तद जतना
दूजी बिछूड़ी रो कांई करै? बां दोनूं बिछूड्यां सेवट पाछी बावड़ी में बगा
आवै। अठै अंग्रेजी फिल्म ‘द मास्क’ याद आवै। किणी रचना नैं बांच्यां उपरांत
उण रो ओळूं में थिर हुय जावणो रचना री सफलता मानीजै अर अेक रचना में किणी
बीजी जगचावी रचना री ओळूं आवणी ई, जियां अरविंद सिंह री कहाणी में प्रेमचंद
री कहाणी-कला री ओळूं रो लखाव हुवणो ई कहाणीकार री सफलता है। इणी दीठ सूं
म्हैं कैवणी चावूं कै नवी पीढ़ी रै कहाणीकरां मांय पूर्ण शर्मा ‘पूरण’ अर
अरविंद सिंह आशिया बेजोड़ कहाणीकार मानीजैला। कथा दोय संकलन में कहाणी
‘1947’ लंबी कहाणी है जिकी देस री आजादी सूं जुड़ी हिंदु-मुसळमानां रै दंगा
अर अंतस री प्रीत नैं उजागर करै। कहाणी ‘बांझ’ में संवाद शैली रो प्रयोग है
तो लुगाई-आदमी रै भेद अर सामाजिक खामियां नैं घणै मरम सूं कहाणी साम्हीं
राखै। बगत री सींव सूं फगत इत्तो ई’ज कै कहाणीकार आशिया अेक भरोसैमंद
कहाणीकार है अर आप सूं राजस्थानी कहाणी नैं घणी घणी उम्मीद राखणी चाइजै।
आज री कहाणियां मांय युवा कहाणीकार खुद री खरो-खरी जूण-जातरा नैं, अंतस रै
सुख-दुख साथै रचण री खेचळ कर रैया है। इणी ओळ मांय मदन गोपाल लढ़ा रै कहाणी
संग्रै ‘च्यानण पख’ री 17 कहाणियां नैं प्रमाण स्वरूप देख सकां। कहाणी
‘आफळ’ मांय अेक कहाणी मांडण री आफळ दिखावतै इण कहाणीकार नैं कहाणी-रचाव री
रचना-प्रक्रिया री कहाणी कैयी जा सकै। आ कहाणी खुलासो करै कै किणी रचना सूं
पैला किण भांत री सोचा-विचारी करणी पड़ै। लिखणो अंत-पंत वैचारिक हुवै अर
कहाणी ‘दोलड़ी जूण’ दांई कोई पण रचनाकार अेकठ दोय जूण जीवै, आं दोनूं बिचाळै
आपसरी मांय रस्सा-कस्सी ई चालै। किणी रचना पेटै उण रै आगै री विगत सोच’र
चिंतन करणो लाजमी लखावै तो पाठक रूप घर-परिवार रा सदस्यां अर बीजा री ई
आपरी केई केई चावनावां अर बात-विचार हुया करै। पोथी रै सिरै नांव कहाणी
‘च्यानण पख’ में डायरी शैलो रो प्रयोग है बठै ई युवा सोच अर संबंधां में
लुगाई जात री ओळखाण अर आपै रो सवाल ई मेहतावू बण जावै। अठै बात करां कथेसर
में छपी कहाणी “आरती अग्रवाल री गळी” री। उण कहाणी रो नांव बदळ’र संग्रै
में अग्रवाल री ठौड़ प्रियदर्शिनी कर दियो है। कहाणी आकाशावाणी में हुयै
किणी अजोगै कारनामै नैं उजागर करै, तो हेत रा ई केई रंगां नैं राखै। इणी
ढाळै री अेक दूजी उल्लेखजोग कहाणी ‘उदासी रो कोई रंग कोनी हुवै’ मानी
जावैला। बदळतो बगत अेक साच है अर आपां रै आसै-पासै रा दीठावां बिचाळै
दौड़ती-भागती कहाणी नैं कागद माथै थिर करणी अेक कला है। किणी जथारथ सूं खवर
बणै अर कहाणी ई बण सकै। किणी जीवतै-जागतै मिनख-लुगाई का विभाग सूं जुड़ी
घटना सूं कहाणी लिखणो विवाद रो विषय बण सकै, आ विचारतां ई कहाणीकार
व्यक्तिगत सींव सूं पात्र नैं बारै काढ’र आरती अग्रवाल नैं आरती
प्रियदर्शिनी लिखण रो मतो करियो हुवैला। “तिरस’ जिसी कहाणियां रै मारफत लढा
इंटरनेट री क्रांति रो अेक दीठाव रंजकता साथै राखै तो आपरी सगळी कहाणियां
री भासा में तार-तार हुवतै साच नैं साम्हीं लावण रा जतन करै।
सेवट कैयो जाय सकै कै कहाणीकारां रै तुलनात्मक अध्ययन मांय एक आधार बिंदु
बदळतो बगत अर दीठावां बिचाळै दौड़ती-भागती सदी नै मान सकां अर इण दीठ सूं
देख्या कहाणी-कला री समाजू साख भेळै जूण रा जथारथ साम्हीं आवै। ओ बो पख है
जिण सूं तर-तर अबखै अर आधुनिक कैयै जावण वाळै जीवण नै आपरै बगत अर बायरै
भेळ आपां कहाणीकारां री कहाणियां री सांवठी ओळख सकां।
आधार ग्रंथ :
• तगादो (1972) भंवर लाल ‘भ्रमर’
• अमूजो कद तांई (1976) भंवर लाल ‘भ्रमर’
• सातूं सुख (1995) भंवर लाल ‘भ्रमर’
• अमावस, अेकम अर चांद (2002) मीठेस निरमोही
• कथा अेक (2001) अरविंद सिंह आशिया
• कथा दोय (2009) अरविंद सिंह आशिया
• च्यानण पख (2014) मदन गोपाल लढ़ा
• बिना हासलपाई (2014) डॉ. नीरज दइया
• ‘आहूतियां’ (शिक्षा विभाग राजस्थान प्रकाशन) संपादक – अर्जुनदेव चारण
• ‘उकरास’ (1991) संपादक- सांवर दइया
• कथेसर-7 अक्टूबर-दिसम्बर, 2013 (संपादक- रामस्वरूप किसान)
नीरज दइया
००००
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