समदीठ रै हवालै आलोचना-दीठ / नीरज दइया

 राजस्थानी आलोचना नै विधा रूप थापित करणिया लेखकां री ओळ मांय कुंदन माली एक ओळखीजतो नांव। कुंदन माली री “समदीठ” (2012) आलोचना री चौथी पोथी है। इण सूं पैली “समकालीन राजस्थानी काव्य : संवेदना अर सिल्प” (1997),  “आलोचना री आंख सूं” (2004) अर “गद्य विमर्श : रचना तत्त्व अर सैद्धान्तिकी” (2006) नांव सूं पोथ्यां प्रकाशित। कांई अठै आपां इण बात रो अफसोस नीं करां कै राजस्थानी में सब सूं बेसी पोथ्यां री कूंत लिखणिया खुद कुंदन माली कूंत-बायरा रैया। अचरज होवै है कै क्यूं कोई नै इण री दरकार कोनी लखाई। समदीठ रै हवालै कुंदन माली री आलोचना-दीठ माथै विचार करणो लाजमी लखावै। समकालीन राजस्थानी साहित्य रै दीठाव अर खासकर नै इक्कीसवीं सदी रै साहित्य अर आलोचना-दीठाव नै जांचां-परखां। चोथै चावळ सीझै री साख में देखां कै चौथी आलोचना पोथी तांई पूग्यां लेखक री आलोचना-दीठ रै दीठाव में कित्तो-कांई है।
अठै जे कुंदन माली री पोथी-परख बुणगट नै काम लेवां तो पोथी री विगत आगूंच मांडणी पड़ैला। पोथी रै पैलै विवेचना-खंड मांय सात अर परख-खंड मांय दस आलेख है। इण पछै अठै सगळै आलेखां रा नांव एक-एक कर’र गिणावणा होवैला। असल में इण बुणगट नैं आपां पोथी बाबत एक महताऊ जाणकारी तो मान सकां, पण आ आलोचना-दीठ कोनी। विगत लिखण रो नेम आलोचक इण पोथी मांय केई जागा परोटै। दाखलै रूप बात करां तो कहाणीकार नृसिंह राजपुरोहित, करणीदान बारहठ, चेतन स्वामी, नंद भारद्वाज, हनुमान दीक्षित, सत्यनारायण सोनी री परख करती वेळा वां रै संग्रै री विगत इण पोथी में मिलै। इण सूं पैली री प्रकासित आलोचना-पोथ्यां मांय ई लेखक रो  ओ सुभाव रैयो है। राजस्थानी मांय आलोचना री पोथ्यां साव कमती प्रकासित होवै। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी रै सैयोग सूं प्रकासित “समदीठ” पोथी रो पाठ जरूरी मान सका।
“समदीठ” रो अरथाव सगळा रचनाकारां अर पोथ्यां नै बरोबर का एकल इकसार दीठ सूं देखणो-परखणो मानीजै। इण सिरैनांव रो दूजो अरथाव ओ है कै आलोचक बिना किणी फरक सगळा री सिरजणा नै समानता सूं देखण-परखण रो हिमायती है। आपां जाणा कै आलोचक कुंदन माली री दीठ सूं बारै कोई रचनाकार अर पोथी कोनी। पानां री दीठ सूं किणी पोथी री एक सींव होवै ई होवै, पण केई बीजी बातां मांय समानता लाजमी होवै जिकी री पड़ताळ करी जावणी चाइजै। आपरी चौथी आलोचना पोथी रै विवेचना अर परख मांय जिका रचनाकारां री बात कोनी करी उण बाबत लेखक पोथी में कठैई कोई खुलासो कोनी करै। लेखक जे समूळै राजस्थानी साहित्य री विगतवार परख नीं करै तो जिकी बातां इण परख-संग्रै मांय सामिल है उण पेटै ई जायजो-जायको लियो जावणो ठीक रैवैला।
किणी पण रचना री आलोचना करतां आलोचक नै चाइजै कै वो मूळ रचना रै लेखक भेळै उण ठिकाणै तांई पूगण री तजबीज करै जिकै ठिकाणै-सर पूगावण रा खोज रचना रै मारफत मांडिज्या होवै। असल मांय रचनाकार री अंतरदीठ तांई पूगण रा जतन आलोचना नै करणा चाइजै। कोई कूंत करी जावै तद रचना अर रचनाकार खातर किणी आलोचना-दीठ नै साम्हीं राखण सूं ई कोई दीठाव देख्यो जाय सकै। आलोचना री सींव रचना होवै अर रचना री कोई सींव नीं होवै। इण ढाळै कैयो जाय सकै कै आलोचना ई रचना रै साथै रैयां उण असीम तांई पूगण रो जतन करै। पोथी रै आलेख- “राजस्थानी कथा-साहित्य रो बदळतो उणियारो” में साहित्य अकादेमी नवी दिल्ली सूं पुरस्कृत पोथ्यां री परख एकठ मिलै। आलेख रो नांव “साहित्य आकादेमी सूं पुरस्कृत पोथ्यां : एक परख” री ठौड़ बदळतो-उणियारो पद काम लेवणो किण ढाळै ठीक मानीज सकै? कांई पुरस्कार सूं किणी विधा रो उणियारो बदळ जाया करै? फेर कथा-विधा मांय साहित्य अकादेमी सूं सम्मानित सगळी रचनावां आलेख मांय सामिल करीजणी ही।
साहित्य अकादेमी सूं पुरस्कृत पोथ्यां अर कथाकारां री परख करती वेळा विजयदान देथा, दिनेश पांचाल ‘दीप’, रतन जांगिड़, अतुल कनक नै कोई लेखक क्यूं टाळै। कांई आलोचक आं रचनाकारां अर रचनावां माथै टीप करण सूं बचण रो प्रयास करै। आलेख मांय इण बचाव खातर इमरजेंसी पछै री सींव थरपण रो कोई कारण निजर नीं आवै। इण आलेख रै नतीजै मांय लेखक नै कहाणी रो भविस अणूंतो उजास भरियो निगै आवै, कांई अठै ओ समझ्यो जावै कै जिका छोड दिया कथाकारां है वां नै सागै रळायां इण निकस माथै ठबक लागै। कहाणी विधा नै लेय’र इणी पोथी मांय बीजो आलेख है- “आधुनिक राजस्थानी कथा-साहित्य में नवा सुर”। आलोचक बात तो कहाणी में नुवा सुर री करै, पण आखी आधुनिक कहाणी नै नवा सुर मांय गावणो-खतावणो वाजिब कोनी लखावै। कथा-साहित्य मांय नवा सुर सोधण खातर कोई सींव का दीठ रो बखाण आलेख मांय कोनी मिलै। नवा सुर रो अरथाव कहाणी रै सीगै नवा कहाणीकारां री सिरजणा लेवणी होवै, जद कै पूरी आधुनिक कहाणी मांय ई जे नवा सुर री बात करां तो वां सगळा रंगां नैं दाखला साथै दिया जावणा हा। इण आलेख मांय विसय माथै फगत भूमिका ई बांधीज सकी है।
पोथी मांय उपन्यास विधा माथै एक आलेख है जिण मांय थरपणा है- समै री दरकार है कै राजस्थानी में उपन्यास खातर आपां नैं “नवलकथा” सबद नैं ई अंगीकार कर लेवणो चाइजै। क्यूं कै शिवचंद भरतिया जी आपां रा पूरबज है अर चंद्रप्रकास देवल दास्तोयेवस्की रै क्राइम एंड पनिसमेंट रै उल्थै “सजा” में ई नवल-कथा सबद बरत लियो। सो लेखक मुजब “उपन्यास” नांव बदळ देवणो फरज अर जिम्मेदारी समझी जावणी चाइजै। अठै उल्लेखजोग बात है कै इण आलेख रै भेळै जिको बीजो आलेख पोथी मांय सामिल उण मांय “उपन्यास” सबद री ठौड़ “नवलकथा” सबद आलोचक खुद ई काम में कोनी लेवै। इण ढाळै री थरपणा कर’र जे लेखक पैली खुद पूरी इमानदारी सूं खुद री पोथी मांय बरतै तद ई दूजा नै फरज अर जिम्मेदारी समझावण री भोळावण दी जाय सकै। अठै सवला ओ है कै कांई शिवचंद भरतिया री किणी बीजी बात नै जे कोई बीजो लेखक दुसरावैला तो उण पेटै ई इण ढाळै री मनगत लेखक री दरसावैला?
“राजस्थानी आलोचना रौ मंजरनामौ” आलेख मांय आलोचना-पोथ्यां री परख है। अठै “मंजरनामौ” सबद रै साव नजीक रो सबद “दीठाव” बरतीज सकतो हो। इण आलेख मांय आलोचना-पोथ्यां री चरचा करीजी है। अर्जुनदेव चारण री पोथी “राजस्थानी कहाणी : परंपरा-विकास” (1998) री परख करतां बैजनाथ पंवार अर भरत ओळा रो नांव माडाणी गिणावै,  जद कै वै मूळ पोथी मांय आं कहाणीकार रा दाखला कठैई कोनी। साहित्य री किणी विधा-परंपरा मांय आलोचक जद कद नांव गिणावै तद उण रै ओळ माथै ई विचार होया करै। कहाणीकार अर कवियां रा जठै कठै नांव लिखीज तद वां रो क्रम ई मेहतावू होया करै। आलोचना पेटै निजू संबंधां रै मोहवस इण पोथी मांय लारली पोथ्यां दांई कवियां-लेखकां रा सागी नांव आगै-लारै देख सकां। पोथी रै परख खंड मांय सामिल कवियां-कहाणीकारां रै चयन खातर ई कोई सांवठी दीठ अठै कोनी दीसै।
लेखक आपरी इण पूरी पोथी मांय आलोचना अर रचना परंपरा मांय फगत सकारात्मक पख ई भेळा करै, जद कै इण ढाळै री समदीठ मांय केई दूजा पख छूटण री पूरी-पूरी संभावना निजर आवै। ओ ई कारण है कै पोथी मांय राजस्थानी आलोचना रो भविस लेखक नै खासो चमकदार अर उजासू दीखै। सही अर गळत मांय विभेद करणो जरूरी होया करै। इण मंजरनामै मांय आलोचना री पोथ्यां री जाणकारी बाबत इत्तो ई कैयो जाय सकै कै प्रकासक रै किणी विग्यापन-पेम्पलेट री गत मांय आं नैं सजावणा आलोचना रै विगसाव खातर ठीक कोनी कैया जावैला। आलोचक खुद अर दूजां रै कामां नै सरावतां थका इण पोथी मांय कोई सक-सुब्बो का संका कठैई कोनी राखै। “अहो रूपम अहो ध्वनि” नै सुर में सुर साधणो आलोचना में ठीक कोनी मानीजै।
कांई कारण रैया कै खुद कुंदन माली कवि होयां रै उपरांत ई वां नै “राजस्थानी कविता रो बदळतो उणियारो” आलेख जरूरी नीं लखायो। जद कै साहित्य अकादेमी सूं तुलनात्मक रूप में देख्यां कविता-संग्रै घणा पुरस्कृत होया है। जे कथा-साहित्य रो उणियारो अकादेमी पुरस्कार सूं बदळै तो कविता रो ई बदळणो चाइजै। बीजी विधावां बाबत ई आ सागण बात लागू होवै। जद कै पुरस्कार सूं कोई पोथी अर लेखक महान कोनी होवै। केई मामला में पुरस्कार साख जरूर भरै। कविता पेटै उस्ताद री राजस्थानी-हिंदी कवितावां रो तुलनात्मक लेखो-जोखो उस्ताद नै नवै ढाळै सूं जाणण रो सांतरो जतन मानीजैला। विवेचना खंड मांय कविता पेटै दोय आलेख है- “राजस्थानी कविता : आजादी पछै” अर “आधुनिक राजस्थानी कविता : चार दसकां रौ दौर” (पत्रिका “जागती जोत” मांय ओ आलेख साढी-तीन दसकां रौ दौर नांव सूं प्रकाशित होयो)। लेखक आपरी पैली री पोथ्यां मांय केवटीज सागण बातां अठै पाछी परोटै। आधुनिक कविता पेटै कोई नवी बात अठै नीं है। साथै ई आ बात कै “राजस्थानी कविता : आजादी पछै” मांय “आधुनिक राजस्थानी कविता : चार दसकां रौ दौर” समाहित है तद इण नै फेर न्यारो राखण री कांई दरकार होयी। कविता नै लेय’र आलोचक री मनगत है- “सांप्रत समाजू जथारथ री दीठ सूं आ कविता दूजी भारतीय भासावां री कविता री बराबरी वाळी ठौड़ माथै ऊभी है।“ कांई पूरी आधुनिक कविता-जातरा पेटै आ बात है का फेर फगत कीं टाळवां अर पसंद रा कवियां नै विचारता आ थरपणा करीजी है। समूळी कवितावां अर कवियां खातर इण ढाळै रो खुलासो होवै तो हरख री बात मानीजैला, अर इण री परख ई कर पाछी कर लेवणी जरूरी होवैला।
परख खंड मांय सात कविता-संग्रै अर तीन कहाणी-संग्रै री परख इण पोथी मांय सामिल करीजी है। आं पोथ्यां अर रचनाकारां रै चुनाव रो आधार आलोचक री निजू पसंद रैयो है का इण बात नै इण ढाळै ई कथ सकां कै लेखक सूं जिकी रचनावां री कूंत संपदकां करवायी- वै करी, वां अठै सामिल है। इणी ढाळै रो पोथी-परख कार्यक्रम इण सूं पैली प्रकासित दोनूं पोथ्यां मांय ई प्रस्तुत होयो हो। आपरी पसंद रा रचनाकार लियां उपरांत ई विवेचना खंड अर परख खंड दोनूं आपसरी में मेळ कोनी खावै। विवेचना में जिकी बातां मिलै, वै परख खंड मांय पोखीजणी चाइजै। विधावां रो अनुपात ई पूरो ठीक कोनी। कथा अर कविता टाळ बीजी विधावां री बात अठै कोनी करीजी। आं आलेखां री विगत बाबत बात करां। पोथी मांय तीन कहाणी-संग्रै परख खंड मांय सामिल होया है- बदळती सरगम (नंद भारद्वाज), गांव-गळी री कहाणियां (हनुमान दीक्षित) अर घमसाण (सत्यनारायण सोनी)। आं आलेखां री विगत पोथी प्रकासन बरस री दीठ सूं कोनी, कहाणीकरां रै जलम रै हिसाब सूं कोनी अर कहाणी-योगदान री दीठ सूं ई कोनी। सत्यनारायण सोनी री घमसाण (1995) पछै घान कथावां (2010) पोथी प्रकासित होयां उपरांत ई वां री जूनी पोथी री परख सामिल करणी कांई अरथ राखै। “जागती जोत” मांय बरसां पैली प्रकासित घमसाण री पोथी-परख नै पोथी मांय सामिल करण री ठौड़ “घान कथावां” री पोथी-परख सामिल होवणी चाइजती। होवण नै तो आ ई करीज सकै ही कै दोनूं कथा-संग्रै री कहाणियां रै मारफत सोनी री कथा-जातरा, कथा-विगसाव, कहाणी-बुणगट कला आद किणी दीठ सूं परख करीज सकै ही। घमसाण री परख अर हनुमान दीक्षित री जूनी पोथी री परख सामिल करण रो मोह पोथी देख इण रो अरथाव ओ ई लगायो जाय सकै कै पानां कमती-बेसी करण खातर जिकी सामग्री ही उण नै अठै बरत लेवण रो जतन करीज्यो है। सागै ओ सवाल है कै हनुमान दीक्षित नै कहाणीकार रूप विवेचना खंड मांय आलोचक कठैई सामिल क्यूं कोनी करै। गद्य-विमर्श पेटै जिण रचना तत्त्व अर सैद्धान्तिकी री बात पोथी मांय उगेरी वा अठै क्यूं बिसर जावै।
परख खंड मांय सामिल कवियां री विगत में कहाणीकारां वाळी बातां कवियां माथै लागू करी जाय सकै। झुरावौ (चंद्रप्रकाश देवल), मुजरौ करै आकास (श्याम सुंदर भारती), धोरां पसर्‌यौ हेत (शारदा कृष्ण), आओ बात करां (अतुल कनक), आंख भर चितराम (ओम पुरोहित “कागद”), म्हारै पांती री चिंतावां (मदन गोपाल लढ़ा) अर तिरस री तासीर (कमल रंगा) री पोथी-परख समदीठ मांय मिलै। आं सामिल कविता-संग्रै री परख पेटै कुंदन माली रै सबद “खट-मीठी” नै उधार लेवतां कैयो जाय सकै कै ओ भेळ-सेळ रो स्वाद “खट-मीठो” री जागा उम्मीद करां कै आवतै आलोचना-संग्रै मांय पूरै जायकै रो सावळ जायजो लेवैला।
समकालीन साहित्य रै केई पखां नै छोड़’र किणी एक ई पख नै “खट-मीठी” आसावादी दीठ साथै प्रगट करीजै तद इण ढाळै री विसमदीठ नै समदीठ किंया कैवां। आलोचना में गणित री बात करां। किणी पण देखनै में आंख अर कोण महतावू होवै। कोई आंख खास कोण माथै राख्यां सूं केई नतीजा बदळ जाया करै। कोई दीठाव दीठ सूं अदीठ होय सकै अर कोई अदीठ सूं दीठ मांय आय सकै। सिरजण करणियां धीरज राखै। आज आंख आपां रै कोण में कोनी, समदीठ रै आलोचक सूं आपां संबंध कोनी बिगाड़ाला। काल री उडीक करांला। काल आपां माथै ई उण री दीठ पूगसी। अबै आलोचना में विग्यान री बात करां। म्हारै दोय आंख्यां है अर दोनूं विसमदीठ, सो चसमो लगार म्हैं वां नै समदीठ बणावूं। असल में देखण-बांचण वाळी दीठ आलोचना-दीठ कोनी होया करै। आलोचना पेटै तो अंतरदीठ चाइजै। बारै री आंख्यां अर उजास जरूरी होवै आंक खातर अर हियै मांय हजार आंख्या जरूरी होवै रचना रो अरथ अर मरम खातर। परख रै पाण अंतरदीठ सूं ई रचनावां में आपसरी रो अंतर प्रगट होवै। चयन रो कोई आधार निगै आवै। उपजी बातां सूं ई छूटियोड़ी बातां अर विचार हियै चांकैसर ढूकै।
टूकै मांय कन्हैयालाल सेठिया री कविता ‘समदीठ’- छोड़ देवै रूंख नै / रस पी’र फळ / सौरम बखेर’र फूल / झालै बांनै जामण धूळ / पण कोनी राखै मिनख / समदीठ / बो ज्यावै मोह वस / कुदरत रै नेम नै भूल! (‘हेमाणी’ कविता-संग्रै) उम्मीद करां कै लेखक मोह-मुगती रै मरम नै आलोचना रो आधार बणावैला।
डॉ. नीरज दइया
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समदीठ (आलोचना-पोथी) कुंदन माली
प्रकाशक- बोधि प्रकाशन, जयपुर ; संस्करण 2012 ; पानां 112 ;  मोल 100/-
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