जूनी ओळूं अर घरू-बातां सागो कोनी छोड़ै

‘दूजो छैड़ो’ उपन्यास नवनीत पाण्डे रो नायिका प्रधान दूजो उपन्यास है। इण सूं पैली वां ‘माटी जूण’ (2002) में नायिका मिसरी री कथा नै अेक छोटै उपन्यास रूप राखी। इण दूजै छैड़ै तांई आवतां-आवतां उपन्यासकार जाणै चौवदा बरसां रो बनवास भोग’र उपन्यास विधा रा कीं नवा गुर गोख्या हुवै।
‘दूजो छैड़ै’ बाबत पैली बात तो आ कै उपन्यास-परंपरा में घणा उपन्यास नायिका प्रधान है, पण इण में विधागत प्रयोग अर नायिका री हूंस जसजोग कैयी जा सकै। ओ उपन्यास पैली करता वाजिब विस्तार साथै मांडती बगत नवनीत पाण्डे सावचेती राखै कै बांचणियां री आंख्यां साम्हीं आदमी-लुगाई री बरोबरी रो साच पूरै मरम साथै प्रगटै। च्यार भींतां री दुनिया सूं मुगत हुयां ई जूनी ओळूं अर घरू-बातां आखी जूण सागो कोनी छोड़ै। ओ साच है कै विगत दावै जिकी गत में हुवै, बो आखी जूण री छियां बण जावै तद उण सूं मुगति संभव कोनी।
‘दूजो छैड़ो’ उपन्यास में मुळक नांव री नायिका जिला कलेक्टर जैड़ै पद माथै पूग’र लारली जूण-जातरा नै बांचणियां साम्हीं आपरै कगद, डायरी अर मनगत रै मिस कैवण ढूकै। नायिका रो ओ कैवण रो भाव नवै रूप में हुवतां थका कथा रै आदू सरूप सूं मेळ खावै, जिण में अेक कैवणियै अर दूजो सुणणियो हुया करतो। घर-परिवार, समाज अर राज री आ कथा असल में मुळक रै मारफत आज रै बदळतै अर बदळियोड़ै राजस्थान री कथा है जिण में आपो सांभती लुगाई री नवी छिब निजर आवै।
‘दूजो छैड़ो’ उपन्यास में सांस्कृतिक, सामाजिक अर भौगोलिक वैभव आपरै केई केई रंगां में रळियावणो लागै। ओ उपन्यास एक सुपनो है जद आपां रै अठै रा हाकम अर मोटा अधिकारी आपणी जमीन अर जड़ां सूं भाषा रै मारफत ऊंडै अंतस आ हेमाणी संभाळण रो सोच साकार करैला। आपरी भाषा-बुणगट, प्रयोग अर पात्रां री विविधता रै पाण ‘दूजो छैड़ो’ समकालीन राजस्थानी उपन्यस पेटै मेहताऊ, पठनीय अर रोचक उपन्यास मानीजैला।

- डॉ. नीरज दइया

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