युवा कवि-कहाणीकार सतीश छिम्पा रो पैलो कहाणी संग्रै ‘वान्या अर दूजी कहाणियां’ (2016) साम्हीं आयो है। इण सूं पैली ‘डांडी सूं अणजाण' (2005) अर ‘एंजेलिना जोली अर समेस्ता’ (2013) नांव सूं दोय कविता-पोथ्यां साम्हीं आयोड़ी। इण संग्रै री दसूं कहाणियां मांय कहाणीकार संवेदना रै स्तर माथै जाणै कहाणी लिखतो-लिखतो कोई कविता रचै। इण ओळी नै इयां पण कैय सकां सतीश री कहाणियां मांय विधावां री सीवां घणी घणी नजीक आय’र सेळ-भेळ हुवती लागै। म्हारी दीठ में ‘वान्या अर दूजी कहाणियां’ मार्क्सवादी विचारधारा रो खंड-खंड लिख्यो सतीश रो एक लांबो गीत है। गीत री मूळ संवेदना आज रै बदळतै बगत मांय बदळती मिनखाजूण-मानसिकता, सार्वभौमिक प्रेम, युवावां रा सुपनां-संघर्ष, बदळती दुनिया अर रोजगार री अबखायां बिचाळै सांस लेवती नवी पीढी है।
‘वान्या अर दूजी कहाणियां’ संग्रै मांय एक कहाणी रो नांव है ‘वान्या’, जिण री नायिका है वान्या। कहाणीकार नै ‘वान्या’ नाम सूं अणूतो लगाव है जिण रै पाण बीजी केई कहाणियां री नायिकावां रो नांव ई वान्या राख्योड़ो है। अर खास बात कै आं कहाणियां री पोथी वान्या नै ई समर्पित है। जद पूरी कथा ई ‘वान्या’ सूं जुड़ियोड़ी है तो विचार करणो लाजमी हुय जावै कै सेवट आ ‘वान्या’ है कुण? वान्या कोई जथारथ है, का सतीश रै मारफत एक युवा मन रो कोई सुपनो। जे वान्या साची सतीश री कोई साइनी जीवती-जागती नायिका है तो कांई सतीश आत्मकथात्मक कहाणियां लिखी है? विगत में जावां तो देखां कै कांई कारण है सतीश आपरी कविता-पोथी में एंजेलिना जोली अर समेस्ता नै आम्हीं-साम्हीं करै अर कहाणी पोथी में ‘वान्या’ रा गीत गावै?
‘वान्या’ रै प्रेम में लिखी आं कहाणियां रो एक साच तो ओ हुय सकै कै प्रेम सार्वभौमिक हुवै अर देस-परदेस री सीवां परबारो बो कठैई आ-जा सकै का किण नै ई कठैई बुला सकै अर किणी खातर कठैई पूग सकै। जरूरी कोनी कै हरेक कहाणी कोई साच हुवै पण कहाणी सुपनां नै ई साच रूप रचै। साच ओ है कै सूरतगढ़ रो रैवासी सतीश छिम्पा आपरी आं कहाणियां मांय आपरै सूरतगढ़ रा केई-केई दाखला देवै। आं दाखला बिचाळै बठै रो पूरो नक्सो आंख्यां साम्हीं आवै- कॉलेज, आकाशवाणी, सड़का अर दोराया-तिराया साथै घणी जागा खुद सूरतगढ़ ई किणी देही रो रूप धारण कर’र कहाणीकार जाणै आपां सूं आम्हीं-साम्हीं करावै। राजस्थानी कहाणी रै सीगै ओ एक प्रयोग है कै किणी मिनख रै साम्हीं ऊभो पूरो समाज सूरतगढ़ रै ओळावै पात्र रै रूप मांय सतीश छिम्पा आपारी कहाणियां मांय नवै पोत मांय ऊभो करै।
सतीश अर सूरतगढ़ एक साचा है, तो कहाणियां मांय केई-केई साच भेळै है। एक दाखलो देखां- बीं गा गुरू जी प्रवीण भाटिया बीं नै रोज फोन कर-कर नै कैंता “आपां नै हारणो कोनी, दूणी मेंनत कहणी है- कामयाबी जरूर मिल सी।” पण बो हार ग्यो... हार ग्यो घर रै हालातां अर बारी-बारी री असफलता स्यूं। फेर सोचै- “अजे के बीगड्यो है- फेर खड्यो हो स्यूं अर कामयाब हो स्यूं।” इस्सा विच्यार बीं रै मन में आवै अर जावै- पण सार किं कोनी नीसरै। पण मां री आंख्यां देख उण रो मन सरणाटो खींच ज्यै।” (कहाणी- म्हूं बेगो इ घरे आ स्यूं ; पेज-38)
जथारथ में प्रवीण भाटिया नामी गुरुजी है अर सतीश बां सूं प्रेरित रैयो है। आं कहाणियां मांय जिण सूरतगढ़ री कसबाई मानसिकता रो जिकर जठै-कठै मिलै बो ई साव नागो साच है अर बो फगत एक सूरतगढ़ कोनी आखी दुनिया मांय इसा केई केई सूरतगढ़ है जिका युवा दुनिया साम्हीं ऊभा है। सतीश री आ दस कहाणियां नै बांचती बगत बांचणियां बिचाळै खुदोखुद सूं ओ सवाल करै कै ओ कियां हुय सकै। ओ स्सौ की साच है, कूड़ तो बै सुपनां ई कोनी जिका कहाणियां रा पात्र देखै। गलोब्लाइजेशन रै बख मांय आज दुनिया साव छोटी हुयगी है, तो आखी देस-दुनिया सेळ-भेळ, सगळी बातां भेळै अबै बगत रो उणियारो ई बदळग्यो। आं कहाणियां रै मारफत आज रै बगत अर बदळियोड़ै उणियारै नै कहाणीकार साव नवी भाषा में ‘वान्या अर दूजी कहाणियां’ में राखै।
कैय सकां कै मार्क्सवादी क्रांति अर जागरण रा गीत उगेरणियो कहाणीकार सतीश छिम्पा असल में वान्या अर एंजेलिना जोली रै मारफत पूरी व्यव्स्था अर विश्व-सत्ता नै एकमेक कर देवै, जठै कोई आपरै सोच रै पाण ई अमीर अर गरीब हुया करै अर कोई किणी सूं प्रेम करतो स्सौ कीं आपरी मरजी मुजब कर सकै। ‘वान्या अर दूजी कहाणियां’ बदळतै जुग में बदळतै प्रेम नै आपरै पूरै परिपेख में अरथावै- ओ प्रेम फगत आदमी-लुगाई बिचाळै रो प्रेम कोनी इण में आदमी-आदमी अर लुगाई-लुगाई रो प्रेम ई सामिल है। डॉ. हीरेन, आईसलैंड रो रॉबर्ट, लेस्बीयन बबीता, वान्या अर खुद नरेटर प्रेम रै केई-केई रूपां नै उजागर करै जिण नै जूनी मानसिकता रा लोग नवा चाळा कैवै।
कहाणीकार सतीश रै मारफत आं दस कहाणियां मांय एक जवान हुयै नायक रै सुपनां अर जथारथ रा केई-केई रंग साम्हीं आवै। नित जूण साम्हीं तर-तर भारी हुवतां दिन-रात बिचाळै बदळता संस्कारां रो साच मोटी खासियत कैय सकां। भाषा रै स्तर माथै सूरतगढ़ री बोली अर जमीन सूं सजी आ कहाणियां मांय रोचकता, पठनीयता अर प्रवाह है। अठै रै पर्यावरण अर प्रकृति रा रंग घणा सांवठा अर सरावणजोग सतीश साम्हीं लावै। साव छोटै सै कथानक माथै कहाणीकार जिण नवी भाषा सूं मौलिक गद्य रचण री हूंस राखै, बा हूंस अर बो जिको कीं कर दिखायो है बो साची सलाम करण लायक है। कैवणो हुसी कै राजस्थानी कहाणी रै आंगणै आ नवी कूंपळ आगै घणी घणी विगसैला अर बरसां याद करीजैला। भूमिका ‘आधुनिक राजस्थानी कहानी रौ परळाटौ’ लिखता नामी कवि-आलोचक डॉ. आईदान सिंह भाटी लिखै- “पाठकां साम्ही सवाल उछाळती परळाटैदार ऐ कहाणियां चेतावनी री कहाणियां है, जिण री आंचलिक भाषा अर मुहावरो नवौ-मौलिक अर तेजवंत है।”
इण ऊजळ पख साम्हीं दूजो पख गिणावणो लाजमी लखावै कै आं कहाणियां री नायिकावां फगत प्रेम खातर ई जलम लियो है, कहाणीकर नरेटर का नायक बां नै कठपुतलियां बणा’र मनमरजी रा नाच नचावै। नायक आपरै विचारां अर विदेसी दारू रै नशे मांय हेंगओवर हुयोड़ो फगत आपरी दुनिया में जीवै अर जीवणो चावै। नर-नारी प्रेम-संबंधां मांय आपरै सुपनां अर विचारां री दुनिया सूं परबारी कोई दुनिया बो देखणी-समझणी ई नीं चावै।
० पोथी : वान्या अर दूजी कहाणियां ; विधा : कहाणी ; लेखक : सतीश छिम्पा
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर ; संस्करण : 2016 ; पाना : 100 ; मोल : 100/-