अेक सफळ नाटक : सूरज रो पूत / नीरज दइया

राजस्थानी रंगमंच री ओळखाण सारू खेचळ करणिया में बीकानेर सूं अेक चावो-ठावो नांव आनंद वी. आचार्य रो मानीजै। आप बरस 1977 सूं संकल्प नाट्य समिति रै मारफत इण दिस लगोलग घणा जतन करता रैया है। जस री बात कै खुद आनंद वी. आचार्य अभिनय अर निर्देशन सूं लांठो जुड़ाव राखै। ‘सूरज रो पूत’ (आनंद वी. आचार्य) नाटक में ‘कर्ण’ रै चरित्र रै न्यारा-न्यारा पखां नै समसामयिक दरसावां री दीठ सूं देखण-समझण री सांतरी कोसीस मिलै। कैवण नै आ पण कैय सकां कै बरसां पछै आनंद वी. आचार्य री आ राजस्थानी में पैली पोथी है, इयां इण सूं पैली बरस 1989 में ‘छोटै मूंडै बड़ी बात’ ई प्रकासित हुयोड़ी है। खुद नाटककार रो मानणो है कै किणी नाटक री सफलता-सार्थकता उण नै रंगमंच माथै खेलण में मानीजै अर ओ नाटक इण दीठ सूं सफळ कैयो जाय सकै। दूजै नाटक-लेखक करता रंगमंच सूं जुड़िया लेखक केई अबखायां अर अवळायां नै सावळ जाण-समझ सकै जिकी कै नाटक खेलीजती बगत साम्हीं आवै। सो अठै आ उल्लेखजोग बात इण नाटक रै पख में देख सकां।      
       कर्ण रै जीवण माथै रच्यै मराठी रा चावा-ठावा लेखक शिवाजी सांवत रै उपन्यास ‘मृत्युंजय’ नै कुण कोनी जाणै, इण रो राजस्थानी अनुसिरजण डॉ. सत्यनारायण स्वामी रो करियोड़ो साहित्य अकादेमी सूं साम्हीं आयोड़ो है। केई कथावां अर गाथावां जूण मांय बाळपणै सूं आपां जाणा अर फेर ई उण पेटै आपां रो लगाव कमती नीं हुवै। रामायण अर महाभारत माथै आधारित अनेक रचनावां लिखीजी अर अजेस लिखीजैला, इणी ओळ मांय आपां ‘सूरज रो पूत’ नै लेवां। ‘सूरज रो पूत’ लिखण लारै नाटककार आचार्य री मूळ मनगत कर्ण अर उण सूं जुड़िया पात्रां विचाळै लगोलग चालतो द्वंद्व रैयो हुवैला अर इणी कारण पूरै नाटक मांय पात्रां रै अंतस नै संवादां रै मारफत साम्हीं राखण रो जतन ओ नाटक करै। 
      नाटक में कर्ण री कथा रा केई-केई दीठाव सू नाटककार सूत्रधार रै मारफत रचै। सूत्रधार कथा कैवै अर बो ई कथा रै मरम तांई लेय’र जावै। असल में ओ नाटक कर्ण रै जीवण रो अेक कोलाज है जिण नै सूत्रधार अेक कैनवास माथै राखै। सूत्रधार समेत 14 पात्र अर 24 दीठावां रो नाटक ‘सूरज रो पूत’ आपरी सहज सरल अर नाटकीय भासा रै पाण बांचण वाळा मांय उछाव रो भाव लगोलग बणा’र राखै कै आगै कांई लिख्यो हुवैला अर कियां लिख्यो हुवैला। कर्ण-कुंती रो ओ चाव संवाद दाखलै रूप देखो-
       “जको ई इण जुद्ध मांय जीतैलो, बा अलग बात है पण साचो जुद्ध तो थूं ई जीतैली। इण जुद्ध मांय पतो कोनी कुण-कुण मरैला। कित्ता ई कौरव, कित्ता ई पांडव मरैला, पण थारा बेटा पांच रा पांच ई रैवैला। कुरुपति इण जुद्ध मांय जे नीं जीत्यो, म्हनैं पार्थ रै हाथां सूं मरणो पड़्यो, पण थारी गोदी मांय तो पांच रा पांच पांडु रैवैला। ... जे कीं अणहोणी होयगी, दुर्योधन ओ जुद्ध जीतग्यो तो इण संसार नैं म्हैं अेक खेलो नुंवो दिखाऊंला, जीतणियां नैं छोड़’र थारै कनै आय जाऊंला।”
       कर्ण कैयो कै अेक खेलो नुंवो दिखाऊंला, असल में ‘सूरज रै पूत’ यानी कर्ण रै मारफत आनंद वी. आचार्य राजस्थानी नाटक विधा नै नुंवो खेलो दिखायो है। राजस्थानी भाषा साहित्य अेवं संस्कृति अकादमी री पांडुलिपि सैयोग सूं प्रकासित नाटक ‘सूरज रै पूत’ कर्ण री जसगाथा गावै अर केई-केई लोक प्रचलित कथावां नै मंच माथै चरूड़ करतो अेक सफळ नाटक रै रूप मांय सदा याद करीजैला।  
नीरज दइया
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पोथी- सूरज रो पूत (नाटक) आनंद वि.आचार्य
प्रकासक-ऋचा (इंडिया), बीकानेर, संस्करण-2013, पाना-80, मोल-150/-
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 दैनिक युगपक्ष बीकानेर 02-02-2016

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