‘थार-सप्तक’ री कीरत रा इक्यावन सुर / नीरज दइया

   नवी कविता री पत्रिका ‘राजस्थानी-अेक’ (1971) रै पांच कवियां री योजना हिंदी कवि अज्ञेयजी रै ‘तार-सप्तक’ सूं प्रेरित मानीजी। कोई योजना का विचार निजू हुवता थकां ई परंपरा सूं बारै नीं हुवै, अर अंत-पत परंपरा बणै का परंपरा री ओळ मांय ओळखीजै। इणी ओळ मांय राजस्थानी रै अणछप्या कवियां नै सात सप्तकां रै ओळावै साम्हीं लावण रो जस कवि-संपादक ओम पुरोहित ‘कागद’ रै नांव लिखीज्यो। आ जसजोग योजना बोधि प्रकाशन रै मायामृग री खेचळ कैयी जावणी चाइजै कै वां अेक सुपनो देख्यो अर सांच कर दिखायो। आं सात पोथ्यां रै गुणपचास कवियां अर संपादक-प्रकाशक नै भेळा राखां, तद जोड़ हुवै- इक्यावन। कैयो जाय सकै ‘थार-सप्तक’ री कीरत रा इक्यावन सुर राजस्थानी कविता-जातरा मांय सोनलिया आखरां सूं लिखीज्या।
    नवा कवियां नै हेत-अपणायत बगसणिया ओम पुरोहित ‘कागद’ कवि रै साथ-साथै भासा रा हरावळ हिमायती रूप ई जाणीजै। भासा-आंदोलन नै ‘म्हारी जबान रो ताळो खोलो’ नारो दियो अर साथै ई मेहतावू पोथी- ‘मायड़ भाषा राजस्थानी’ (2013)। इण पोथी मांय भाषा, साहित्य अर संस्कृति बाबत घणी उल्लेखजोग जाणकारी भेळी करीजी अर लेखक खुद रै अध्ययन-मनन-चिंतन नै सबद दिया, आपां इण नै छोटो-मोटो कोश ई कैय सकां। दूजै अरथां मांय थार-सप्तक रा सात खंड ई किणी कोश सूं कमती कोनी। इक्कीसवीं सदी री आधुनिक कविता री बात करतां आं सप्तकां री चरचा घणी जरूरी लखावै। इयां पण कैय सकां कै आधुनिक कविता री बात आं सप्तकां नै टाळ’र करीजणी संभव कोनी।
    अेक योजना रै रूप मांय बरस 2012 सूं लगोलग थार-सप्तक साम्हीं आया, आ योजना अजेस चालू पण राखी जाय सकै। अणछप्या कवियां रो ओ संकलन कदैई पूरो कोनी हुय सकै अर ओ संभव कोनी कै आ योजना चालू राखां तो कदैई कैय सकां कै हां अबै ओ काम पूरो हुयग्यो। लिखणियां लगोलग साम्हीं आवता जाय रैया है। थार-सप्तक फगत सात ई साम्हीं आवणा हा अर अबै बोधि प्रकाशन सूं ‘थार-सतक’ रूप सौ कवियां नै अेकठ  प्रकाशित करण रो अेलान हुय चुक्यो है। थार-सप्तक (सात खंड) अर थार-सतक पोथ्यां इतिहास मांय सदीव याद करीजैला।  
इक्कीसवी सदी री राजस्थानी कविता मांय खासा कीं बदळाव हुयो अर इण बदळाव मांय युवा कवि घणा सक्रिय निगै आवै। जद म्हैं राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी खातर युवा कवियां री कवितावां रो संकलन ‘मंडाण’ रो संपादन करियो, आ बात पुखता हुई। ‘मंडाण’ मांय 55 कवि भेळा करीज्या पण थार-सप्तकां मांय केई नवा कवि साम्हीं आयो, जिका उण बगत म्हारै ध्यान मांय नीं हुवण सूं विचार नीं करीज सक्यो। ओ कागद जी रो लांठो सोच हो कै राजस्थानी मांय प्रकाशन री अबखायां रै चालता अर बीजा कारणां सूं जिण कवियां री कविता-पोथी साम्हीं नीं आय सकी वांरै काव्य-सिरजण नै साम्हीं लायो जावै। अणछप्या राजस्थानी कवियां रो अै संकलन किणी कविता-पत्रिका अर डाइजेस्ट रो काम सारै, साथै ई समूळो काम जियां आगूंच लिख्यो किणी कोश दांई लखावै।
    खुद कवियां आपरै रचनात्मक सैयोग रै भेळै फूल सारू पांखड़ी अर्थ सैयोग ई थार-सप्तक योजना मांय करियो, वां आपरी पोथ्यां री पड़त लेय’र आपरै आसै-पासै रै हलकां मांय इण योजना अर पोथी रो प्रचार-प्रसार ई करियो। राजस्थानी रै रचनाकारां अर प्रकाशकां नै घर फूंक’र भासा री अगन सांभणी पड़ै। पोथ्यां री खरीद रो कोई पुखता आधार अजेस कोनी बण्यो। जे सरकार राजस्थानी नै मान्यता अबार नीं देवणी चावै तो इत्तो तो करियो जाय सकै कै सगळी सरकारी खरीद मांय ओपतै रूप मांय राजस्थानी पोथ्यां री खरीद रो कोई पक्को फैसलो लेवै। सितर-साठ नीं तो सगळी खरीद मांय आधी खरीद राजस्थानी साहित्य खातर जरू करै तो आ गाड़ी कीं धकै बधै। ओ अेक जरूरी प्रयास हुवणो ई चाइजै। जे राजस्थानी री पोथ्यां राजस्थान मांय नीं खरीदी जासी तो कांई दूजै प्रांतां मांय खरीदी जासी?
    आं कवियां री बात करां तो घणै हरख री बात कै पैलै सूं सातवै सप्तक तांई रै कवियां मांय केई कवि कागद जी री आंगळी पकड़’र चालता दीसै। अठै किणी खास कवि रो नांव नीं लिख’र फगत संकेत रूप बात कैवण लारै जतनओ है कै इण पेटै कागद जी अर वां नवा कवियां री हूंस नै रंग कैवां। इण ओळी नै दोय दीठ सूं देखी जावणी चाइजै कै कवि कागद जी आप री नवी पीढी नै कविता रै मारग चलावणो सीखा रैया है, दूजी दीठ आ पण कै आज जिका कवि भासा अर कविता री डांडी पग उठावणा चालू कर करिया है वै लगोलग इण मारग रैसी तो अेक दिन कोई आंगळी छोड़’र मजल पूगसी अर मजल थरपणियां ई बणसी। प्रमाण जोवण नै घणो अळघो जावण री दरकार कोनी। घणै हरख री बात है कै आं अणछप्या कवियां मांय जिका कवि अेकठ करीज्या बां मांय सूं केई कवियां रा निजू कविता संकलन ई थार-सप्तक सूं सक्रिय हुया बेगा साम्हीं आया। जियां कै छप्पनियां हेला (जनकराज पारीक), चाल भतूळिया रेत रमां (राजूराम बिजारणियां), म्हारै पांती रा सुपना (राजू सारसर ‘राज’), थूं क्यूं हुवै उदास (संजय पुरोहित) अर सपनां संजोवती हीरां (ऋतुप्रिया)। बीजा केई नांव भळै हुय सकै जिका म्हारै ध्यान मांय नीं आया हुवै। केई कवियां री कविता-पोथ्यां छपण री जुगत मांय है। गुमेज करां कै ओ पूरो हरावळ जत्थो राजस्थानी कविता री जोत नै सवाई करण रो सोच राखै।
    अठै ओ पण उल्लेखजोग कैयो जावैला कै थार-सप्तक रा दोय युवा रचनाकारां राजूराम बिजारणियां अर ऋतुप्रिया नैं लगोलग साहित्य अकादेमी रो युवा साहित्य पुरस्कार अरपित करीजणो इण योजना रो गुण मानीजैला। सप्तकां मांय संकलित युवा कवियां नै बेसी बधाई इण बात री दी जावणी चाइजै कै कविता नै आपरी परंपरा-विकास भेळै समझ’र आं कवियां भारतीय कविता रै भेळै चालण रो सोच-सपनो अंगेज्यो।
    अेक दूजी अरथऊ बात अठै करणी लाजमी लखावै- केई दाना रचनाकार आ कैवतां सुणियां जाय सकै कै लिखण-पढण पेटै नवी पीढी मांय राजस्थानी रो काम संभाळिया लारै कोई कोनी। म्हारो कैवणो ओ है कै इसै दाना लोगां नै थार सप्तक अर मंडाण रै कवियां री कवितावां बांच’र ठस्योड़ो गुमेज भांग लेवणो चाइजै। अेकदम नवा अर जवान कवि जद भासा अर साहित्य री कमान संभाळै तद सोनै रो सूरज उग्यो समझो। गुमेज सूं बां रै हुवण रो पतियारो थार-सप्तक करावै। आं नवा कवियां नै मान सूं बधावां अर इण रा जतन ई करां- आ जातरा अणथक लगोलग चालै।
    बियां तो कवि फगत कवि हुवै अर उण नै कवि रूप मांय उण री कवितावां रै पाण ई देख्यो-परख्यो-समझ्यो जावणो चाइजै, पण समाज मांय पद री ई आपरी गरिमा हुवै। अठै कैवता हरख हुवै कै थार सप्तक रै कवियां मांय मोटो पद सांभणिया राज रा हाकम ई सामिल है तो अजेस रूजगार खातर रुळता-रोवणो मांडण वाळा जूझारू नव-युवक ई भेळा देखां। इणी ढाळै ऊमर रै आंगणै, बडेरा कवियां भेळै नवी कूंपळां जिका नै आपां घर मांय कैवां तो लोटो झिलावणिया अर उठावणिया ई कवि-रूप सामिल मिलै तद इण नै अपणायत रो सुख जाण’र हियो हरखीजै। आं रै हुवण अर बगत रैवतां आपरी भासा-कविता सांभण री सौरम आखै मुलक मांय जरूर परसैला। आ बात संस्कारां री है अर इण माथै गुमेज कियो जावणो चाइजै कै घर रा लडेसर बेटा-बेटी आपां भेळै कवि-रूप थार-सप्तक मांय सामिल हुया।
    थार सप्तक रा संपादक-कवि लिखै- ‘अठै रै कण-कण में कविता रा सुर हिन्दी सूं सईकां पैली सूं गूंज रैया है। अठै रै लोगां री जुबान माथै कविता बिराजै। इणी कारण अठै रो सामाजिक बात-बात में अखाणा कैवै। आप री बात री साख भरण सारू कोई जूनी साखी, कोई कैबा, कोई कोथ बात-बात मे कविता रूप में सुणावै। बात में कविता रो पुट नीं दियां अठै रै सामाजिक नै रंगत ई नीं आवै। अैडी भाव भौम माथै नीं तो कविता कदैई खूट सकै अर नीं कदैई थम सकै।’ (थार-सप्तक 7) आं सगळी बातां रै उपरांत ई ओ सवाल वाजिब लखावै कै कविता रै भेख मांय कांई सगळी रचनावां कविता हुवै का कविता हुवण खातर उण रै भेख नै टाळ ई केई इसी बातां भळै हुवै जिण रो माकूल मायनो आज रै कवियां नै विचारणो चाइजै। बात नै सीधै सवाल रूप आपां कवि संजय पुरोहित री कविता मांय देख सकां- ‘कविता/ निपजा नीं सकै धान/ भर नीं सकै पेट/ किणी भूखै रो/ बुझा नीं सकै/ काळजै री आग/ नीं बरसा सकै/ धपटवां पाणी/ दे नीं सकै सांस/ तो भळै क्यूं है कविता/ क्यूं रचूं म्हैं कोई कविता।’ (थार सप्तक-4, पेज- 56) ओ सवाल दूजै ढाळै कवि कृष्ण वृहस्पति मांडै- ‘ईचरज तो है कै/ लगोतार/ इण तपतै तावड़ै सूं/ ना तो सूखी भावां री नदियां/ अर नाई’ज/ काळा पड़्या/ म्हारी कविता रा कागद।’ (थार सप्तक-5, पेज- 31-32)
    कविता रै हुवण साख मानां कै अजेस कविता रा कागद काळा नीं पड़्या। सप्तकां पेटै नवा-जूना अणछप्या कवियां री कवितावां बांचता 42 कवियां अर 7 कवयित्रियां रा नांव साम्हीं आवै, जे दो-तीन का च्यार नांव टाळ देवां तो बाकी सगळा रा सगळा ई कवि नवा जातरू। नवा इण दीठ सूं कै आं री कवितावां नै पैली बार कोई इण रंग-रूप मांय सजावण रो काम करियो, दूजी बात आ कै आं सगळी कवितावां नै कवि री मौलिकता नै घणै जतन सूं संभाळतां संपादक ओम पुरोहित आं कवितावां नै कवियां री निजू भासा नै बचा’र समरूपता अर अेक आंटै ढाळण रो घण मूंघो काम कर्यो।
    थार-सप्तकां मांय कवितावां रा केई-केई रूप-रंग देख्या जाय सकै। छंद मुक्त सूं लेय’र छंदवाळी रचनावां ई अठै सामिल मिलैला। गीत-गजल-हाइकू-डांखळा-क्षणिकावां आद देख’र कैय सकां कै नवी आवती कवितावां अर कवियां री आ अेकठ बानगी है। भरोसो कियो जावणो चाइजै कै इण सदी मांय कवितावां रा न्यारा-न्यारा रंग पांगरैला। अणछप्या कवियां री कवितावां मांय स्सै सूं बेसी ऊरमा इण रूप मांय देख सकां कै जीया-जूण रै किणी घटना प्रसंग नै कविता रै आंगणै रचण रो उमाव आं मांय दूजा करता बेसी लखावै। दखलै रूप युवा कवि हरीश हैरी री आं ओळ्यां नै देखां- ‘च्यारूं भाई/ अेक ई तूळी सूं/ अजै ई सिळगावै बीड़ी/ पण रोटियां सारू/ घर में बण रैया है/ केई चूल्हा!’ (थार सप्तक-6, पेज-67) ओ साव नान्हो-सो प्रसंग कवि-मन नवै-जूनै बगत बिचाळै री छेती नै कमती सबदां मांय परोटै। चूल्है अर तूळी री आग रो आंतरो आज रै अरथ-तंत्र रा भेद खोलै। अठै घर-घर पसरणियै फंटवाड़ै रो लांपो ई साम्हीं आवै।
    कविता रै विसय री बात करां तो आं कवियां मांय लोक रा राग-रंग, संस्कार अर आज रै बगत री जूझ दीसै। आपां विचार करां कै कविता पेटै नवी जमीन रो कांई मायनो हुया करै? हरेक कवि रो आपरो न्यारो-न्यारो परिवेस हुवै अर उण मुजब उण रा रंग साम्हीं आवै, आं रंगां बिचाळै कोई रचनाकार खुद नै बचावण खातर वा चितरामां नै बचावै। आंख साम्हीं जिको दीठाव हुवै का कोई बात-विचार का सार तांई पूगै तद बा उणी रूप मांय हरेक दाण कोनी रचीजै अर रचण पछै ई भासा मांय कवि केई ढाळै री तबदीली ई करै। कविता री भासा अर बुणगट पेटै आपरै सबदां नै संभाळतो हरेक कवि उण देख्यै-भोग्यै साच का किणी बात-विचार नै आखरां रै आसै-पासै बसावै। अठै बगत-परवाण कवियां नै आगूंच हुयै काम री जाणकारी ई जरूरी हुया करै। कवि गौतम अरोड़ा री आं ओळ्यां नै बांचां- ले आव,/ उछाळां भाटौ/ करां आभै बादळी खाड़ौ/ काढण नै हिस्सै रौ पाणी,/ थूं हाथ दे, म्हैं देवूं हूंस। (थार सप्तक-1, पेज-50) भासा रै इण मिजाज सूं हिंदी कवि दुष्यंत कुमार री ओळूं आवै। कवि अशोक परिहार ‘उदय‘ लिखै- ‘घर बणै/ ईंट-भाठां सूं/ सीमट-रंग-रोगन सूं/ घर पण कद बणै/ बिनां मिनख/ इण सारू पैली/ मिनख तो बण/ घर तो/ बाद में ई सई!’ (थार सप्तक-7) आं नवां कवियां भावना नै देखां-परखां।
    लंबी कविता का छोटी कविता मांय कवि कविता री ठौड़ जद किणी कहाणी रो रचाव कवि करण ढूकै तद कविता घणी वेळा पटरी सूं उतरै। घणो अबखो हुवै किणी कविता मांय कहाणी नै कविता दांई रचणो। ‘चड्डी आळो फूल’ कविता मांय चौन सिंह शेखावत लिखै- ‘पैली-पैली जद जंगळ मांय/ चड्डी पैर’र/ अेक फूल खिल्यो/ तो मत पूछो कांई हुयो’ (थार सप्तक-2, पेज-25) कविता मांय ओ उमाव अर ऊरमा उपजावणो कै किणी आगूंच देखी-सुणी बात सूं कविता नै जोड़’र कवि-दीठ बांचणियां नै मिलै। राजस्थानी कविता रै आंगणै थार-सप्तकां रै मारफत इण ढाळै री केई कवितावां अर कवि आपनै मिलै जिका कविता नै नवा विसय-बुणगट सूं ओप दरसावतां दीसै। बियां साच तो ओ पण मान सकां कै कविता पेटै ओ कोई सूत्र कोनी कै किण नै कविता कैवां अर किण नै कविता नीं कैवां। कवि राजूराम बिजारणियां री ओळ्यां देखां- कविता कोनी/ धरती री/ फाड़’र कूख/ चाण’चक/ उपड़्यो/ भंपोड़। (थार सप्तक-2, पेज-54) नवा चितराम नवी भासा नवी कविता री कमाई कैयी जावैला। राजू सारसर ‘राज’ लिखै- सूती पड़ी है रात/ दिन नै/ हांचळ में दाब’र। (थार सप्तक-1, पेज-83) इणी ढाळै कवि युवा ई किणी बडेरै दांई सीख सीखावतां ई कोनी संकै, जियां- मनोज पुरोहित ‘अनंत’ री आं ओळ्यां नै देखां- कीं तो कर/ पण डर ना/ ऊंची राख नस/ बस। (थार सप्तक-1, पेज-102)।
    फोन, मोबाइल अर फेसबुक आद नवी चीजां जीया-जूण मांय सामिल हुयगी, सामल कांई आं बिना अबै जीवारी मुसकल हुयगी। नवा कवि जिका आं रा हेवा हुयोड़ा है वां री कवितावां मांय आं सूं जुड़ी केई कविता देख सकां। जियां थार सप्तक दूजै रा कवि गौरीशंकर री कविता- ‘आज बा’ अर ‘थूं बुहारी काढती’ नै बांचा। फोन माथै हुयोड़ी बंतळ रै मिस छांटां हियै पूगण री बात हुवो का फेसबुक माथै घणा अळघा बैठा दोय जीवां री मनगत, बांचणियां रै मनां मीठी प्रीत भेळै किणी मुळक नै जीवती करै। नवा कवियां री आ मोटी खासियत मानी जावैला कै वै आपरी कविता रै मारफत किणी खिण नै का समियै नै ओळूं रै ओळावै जीवती राखण रा जतन करै। कवि-ओम ‘अंकुर’ लिखै- ‘बतंळ तो हुवै आज ई/ पण फेसबुक अर वाट्सअप माथै/ फेस-टू-फेस/ बैठणै री/ कुण पाळै हूंस!’ (थार सप्तक-7)
    धरती मा, जलमदेवाळ मा अर मा-भासा रै प्रेम-अपणायत रा  सुर आं कवितावां मांय मिलै। कवि पृथ्वी परिहार री कविता ‘म्हारै पांती री छांटां’ घर-परिवार अर मरुथळ रै हेत नै बखाणै। इणी ओळ मांय कवि अजय कुमार सोनी लिखै- ‘साच्याणी/ म्हनै बा रेत/ भोत ठंडी लागै/ अर लिट्यो रैवूं/ उण माथै सगळै दिन/ जाणै माचौ माथै/ बिछाय दी होवै/ किणी नुंई चादर/ पून लागै/ मा रो परस।’ (थार सप्तक-5, पेज- 31-32)
    कविता मांय सोच-बात-विचार अर किणी मन री विगत ई मोटी हुया करै। कवि नरेश मेहन लिखै- ‘म्हैं/ गांधी रै देस रो/ सोमनाथ रै पंडां ज्यूं/ सोऊं आखी रात/ बेखटकै आ सोचतो थको कै/ बेखटकै आ सोचतो थको कै/ कदै ई इयां थोड़ी होया करै।’ (थार सप्तक-3, पेज- 18) कवि जितेंद्र कुमार सोनी री आं ओळ्यां मांय विचार करां- ‘च्यार दीवारां अर/ छात री कीमत/ जाणै है/ आसमान री छात तळै/ फगत एक/ बूढो बाप।’ (थार सप्तक-6, पेज-38) अठै घर री अणमोल कीमत बखाणतां कवि तळै सबद नै हेठै रै अरथ में लियो लखावै, पण अठै तळै सबद आवण सूं कविता री सीव बधै। मिनख किणी कडाई मांय कोनी अर ओ टोपसी रो आभो मिनखां रै माथै हुय परो ई सगळा नै खुद मांय बसा’र राखै। जूण मांय सगळो तळीजणो इण आभै अर छात सारू ई करीजै। बूढै बाप पेटै अठै ऊमर रो लखाव भळै उजागर हुवै।  इन्द्रा व्यास लिखै- ‘आपरां रो दियो दुख/ अब कियां पचाऊं/ खुद नै कूकण सूं/ अब कियां बंचाऊं/ म्हैं अहिल्या भी कोनी/ जिको भाठो बण/ धरती ऊभ जाऊं/ अर पछै ओ बिसवासई कठै/ कै म्हारो दुख धोवण कदैई/ कोई राम भी आवैला!’ (थार सप्तक-7)
    सेवट नवा-जूना सगळा कवि-कवयित्रियां, संपादक ओम पुरोहित ‘कागद‘ अर प्रकासक मायामृग नै घणा-घणा रंग कै इक्कीसवीं सदी री कविता-जातरा मांय थार-सप्तक सदीव याद करीजैला।
-डॉ. नीरज दइया
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पोथी- थार सप्तक (सात कविता संकलन) संपादक- ओम पुरोहित ‘कागद’
प्रकासक- बोधि प्रकाशन, जयपुर
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