‘अेकर आज्या रै चाँद’ री कवितावां युवा मन रै
चिंतन अर सोच री कवितावां है। आं छोटी-छोटी कवितावां मांय जीवण अर आपरै
आसै-पासै री दुनिया नै देखण-परखण रौ अेक नजरियौ है। कवि पाखती आपरी मौलिक
दीठ अर संस्कार है। आं कवितावां नै बांचता मानीता कवि कन्हैयालाल सेठिया री
काव्य-बुणगट चेतै आवै। किणी काव्य-परंपरा रै विगसाव में किणी कवि रै
प्रभाव नै लेवणौ जठै संकट हुवै बठै ई ओ जुड़ाव गीरबै री बात हुय सकै।
आं कवितावां री ओळख इण ढाळै ई करी जाय सकै कै
अै युवा-मन री कवितावां है, पण ओ कवि आपरी रूमानी-दुनिया सूं परबारौ किणी
अरथाऊ सोच री पगड़ांडी माथै पूगग्यौ है। संग्रै री घणखरी कवितावां री बुणगट
में कमती सबदां नै काम में लेवता थका, कवितावां री सरलता-सहजता अर गति
देखणजोग है। इण खातर आ बात सुभट है कै राजस्थानी युवा कविता मांय जिका कीं
नांव है, बां मांय युवा कवि दुष्यंत जोशी रौ नांव काव्य-दीठ अर भासा पेटै
मैताऊ मानीजैला।
टाबर सीरीज री कविता अर दूजी केई कवितावां सूं परतख हुवै कै कवि रौ सुभाव किणी बडेरै दांई हुयग्यौ है। आज रै इण आधुनिक बगत नै आपरी परंपरा अर संस्कारां रै पाण कवि पारखी- दीठ सूं समझ-समझा सकै।
जद कवि दुष्यंत जोशी ओ जाण लियौ है कै- ‘सोचणौ जरूरी है/ सोचणौ चाइजै।’ तद मान सकां कै कवि आपरै सोच री सीवां परबारौ आवतै कविता संग्रै में बै आसावां पूरी करैला, जिकी आसावां इण कवितावां सूं उपजावै।
-डॉ. नीरज दइया
टाबर सीरीज री कविता अर दूजी केई कवितावां सूं परतख हुवै कै कवि रौ सुभाव किणी बडेरै दांई हुयग्यौ है। आज रै इण आधुनिक बगत नै आपरी परंपरा अर संस्कारां रै पाण कवि पारखी- दीठ सूं समझ-समझा सकै।
जद कवि दुष्यंत जोशी ओ जाण लियौ है कै- ‘सोचणौ जरूरी है/ सोचणौ चाइजै।’ तद मान सकां कै कवि आपरै सोच री सीवां परबारौ आवतै कविता संग्रै में बै आसावां पूरी करैला, जिकी आसावां इण कवितावां सूं उपजावै।
-डॉ. नीरज दइया
(पोथी माथै फ्लेप-1)
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पोथी- अेकर आज्या रै चाँद (कविता संग्रै) दुष्यंत जोशी
प्रकासक-बोधि प्रकाशन, जयपुर, संस्करण-2012, पाना-80, मोल-60/-
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पोथी- अेकर आज्या रै चाँद (कविता संग्रै) दुष्यंत जोशी
प्रकासक-बोधि प्रकाशन, जयपुर, संस्करण-2012, पाना-80, मोल-60/-
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