ओ सांच आगूंच आपां जाणा कै राजस्थानी साहित्य मांय निबंध रो विकास बीजी
विधावां करता कमती होयो। इण रा केई कारण रैया- पत्र-पत्रिकावां अर निबंध
लिखावणियां संपादक कोनी। लिखणियां रचनाकार ई घणा कोनी। लिखण सारू पोमावणिया
अर घोदावणिया ई कमती है। निबंधकार चेतन स्वामी आपरै निबंध संग्रै
“इंदरधनख” मांय पोमाया-पोमाय’र लिखावणियां री खोज-खबर तो कोनी देवै, पण
घोदाय’र लिखावणियां चंद्रप्रकास देवळ अर मालचंद तिवाड़ी नै पोथी सादर
समरपित करै। पोथी समरपण लेखक रो निजू मसलो होवै। पोथी समरण पानै माथै
लिख्यो है कै “इण पोथी रा घणकरा आलेख घोदाव’र लिखाया”। आ जाणकारी लेखक री
ईमानदारी नै उजागर करै। बियां चेतन स्वामी जिसा लेखकां नै घोदाय’र लिखावणो
ओखो काम मानूं, सो देवळ अर तिवाड़ी नै इण जस सारू बधाई।
लागतै ई ओ खुलासो अठै ठीक रैवैला कै समरपण रै आगलै पानै माथै
चंद्रप्रकास देवळ रै कविता संग्रै “कावड़” (१९८९) री भूमिका सूं साभार
ओळियां मिलै, जिकी विजयदांन देथा री इण भांत है- “…. कविता साठ दिन, साठ
रात मांय एक। कीकर आसंगिया, कीकर मन लागौ। थोड़ो-घणी समूझणी के जूंझळ तो आई
व्हैला? कवि नै कविता रचियां टाळ कीकर पोसावै? बाकी किणी कांम मांय नागा
नीं, फगत कविता रचण मांय नागा। लगैटगै राजस्थानी लेखकां रौ औ ई ढंगढाळौ,
कदास इण सूं ई माड़ौ। म्हारी जांण मांय अजगर ई इत्तौ ओजौ नीं ताकै।“
(पेज-६)
विचार करां कै लेखक आपरै निबंध-संग्रै में चोबीस बरसा जूनी आ बिज्जी री
बात क्यूं परोटै? ऐ टाळवी ओळियां अठै कांई मायनो राखै? इंदरधनख पोथी कविता
री कोनी अर खुद कवि चेतन स्बामी आं ओळियां रो मरम निभायो कोनी। आपरी कविता
पोथी “सवाल” पछै घणो लांबो बगत होयो, कविता री कोई पोथी कोनी आई। अठै कैवणो
पड़ैला कै किणी जूनी बात नै माण देवणो चाइजै, पण देवळ खातर जिकी बात
बिज्जी लिखी बा अठै अणचाइजती लखावै। म्हारी जाण मांय राजस्थानी साहित्य
बाबत कीं गंभीरता सूं सोचण-समझण वाळा तमीजदार लेखकां मांय एक नांव चेतन
स्वामी रो ई लियो जाय सकै। कविता-कहाणी अर अनुवाद भेळै संपादन रै ओपतै कारज
री कीरत लिया आप एक जसजोग मुकाम हासिल करियो। “आधुनिक राजस्थानी कहाणी अर
लोक जीवन” शोध-पोथी आपरी आलोचनात्मक दीठ माथै परियारो कारावै।
निबंधकार कोई टीप किणी मानीता लेखक का लेखकां रै घोदायां सूं राख सकै।
जियां पोथी मांय बिज्जी री टीप। लेखक रै निबंध-सिरजण पेटै घोदावण री बात नै
स्वीकारणो तो अवगुण मानीजैला। निबंध मांय कोई बात कै खुद रो नांव कोई रै
घोदावण सूं लिख्यो जाय सकै। दाखलै रूप बात करा तो राजस्थानी कहाणी परंपरा
मांय मालचंद तिवाड़ी रो जुग थरपीजणो। “इंदरधनख” नांव माथै विचार करां तो
जाण आभै मांय किणी खास बगत कदै-कदास जोग सूं निजर आवै। अर निजर आयां ई आपां
नै खथावळ रैवै। लागै कठैई अदीठ नीं होय जावै इंदरधनख। पोथी रै नांव सूं
लखावै कै इण में सात निबंध होवैला। निबंध बारा है अर आं बारा निबंधां रा
कुल विसय सात कोनी। पोथी मांय उपन्यास, कहाणी, कविता, अनुवाद साथै लोकगीत,
निरत, मांडणा, डिंगळ काव्य, चारण साहित्य, नीति काव्य विसयां नै एकठ लेखक
राखै।
निबंध मांय किणी रंग री परख करणी अबखी होवै। निबंध किणी पण विसय माथै
लिख्यो अर लिखवायो जाय सकै। विसयां री विविधता रा आप रा अणगिणती रा
न्यारा-न्यारा रंग होवै। निबंध संग्रै “इंदरधनख” रै मारफत ऐड़ा ई केई रंगां
नै आपां सामीं चेतन स्वामी एकठ राखणा चावै। डॉ. मदन सैनी लिखै- “राजस्थानी
रै सतरंगी साहित्य रै “इंदरधनख” रा ऐ निबंध केई मायनां में घणा महताऊ कैया
जाय सकै, क्यूं कै आं रै मांयनै राजस्थानी री घणकरी विधावां नै लेय’र
निबंधकार आपरी कीं निजू थरपणावां थरपी है।” (फ्लैप- १)
आपां रंग बाबत कथीजी बातां नै फगत “इंदरधनख” बाबत नीं मान’र सतरंगी
राजस्थानी साहित्य बाबत ई मान सकां। इंधरधनख अर सतरंगी रै अरथ नै फगत सात
मांय बांधणो अठै बिरथा होवैला। अठै सात रै आंकड़ै मांय क्यूं उळझां।
विग्यान मुजब तो आपां पाखती जे एक रंग धोळियो है तो प्रिज्म रै मारफत उण
मांय ई सात रंग निरख सकां। जे काळियो रंग करामात दिखावै तो सगळा रंग ढकीज
जावै। साहित्य मांय रंग किणी एक रंग मांय बंधै कोनी। रंग रा केई अरथाव
होवै। लेखक नै रंग कै वै निबंध विधा री सूनवाड़ मांय एक इंदरधनख नै दीठावै।
किणी जाणकारी नै निबंध मांय राखणो महताऊ होवै पण उण सूं ई महताऊ होवै
आलोचनात्मक दीठ सूं किणी विसय माथै आपरी टीप राखणी। किणी थरपणा नै थरपणो
महताऊ मानीजै पण पोथी मांय केई छात्रोपयोगी निबंध सामिल करीज्या है। इसा
निबंध तो चेतन स्वामी किणी पण विसय माथै लिख सकै। लूंठै राजस्थानी साहित्य
रा अनेक विसय अर प्रसंग कॉलेज रै भणेसरियां खातर जरूरी मानीजै, जिका इण
पोथी सूं वां नै मिलैला।
रूसी लेखक रसूल हमजातोव री सगळी भोळावण निबंधकार चेतन स्वामी आगूंच
जाणै-समझै क्यूं कै वै म्हारो दागिस्तान रो अनुवाद बरसां पैली करियो।
हमजातोव री भोळावण माथै अठै ध्यान राखीजतो तो ओपती बात होवती। पोथी री
रूपरेखा बणावती बगत आ अबखाई जरूर आयी होवैला कै निबंध किण विगत सूं राखां।
इण अबखाई नै साम्हीं आवती देख निबंधकार अवस एकर विचारियो होवैला कै आलोचना
रा आलेखा बिच्चै केई आलेख अठै अपरोगा लागैला। साहित्य री केई केई विधावां
जिकी छूटगी, उण माथै आलेख लिखण री जीव मांय आई होवैला। उम्मीद कर सकां कै
लेखक री भळै कोई निबंध पोथी आवैला जिण मांय छूटग्या जिका रंग मिलैला। चेतन
स्वामी साहित्य बाबत कीं गंभीरता सूं सोचण-समझण वाळा तमीजदार लेखकां मांय
एक मानीजै सो आ उम्मीद बेजा कोनी। बियां किणी निबंध पोथी मांय किणी एक ई
ढाळै रा निबंध होवणा चाइजै आ बात कठैई लिख्योड़ी कोनी।
पोथी रो पैलो निबंध है- “राजस्थानी उपन्यास रो बाळसाद” जिण मांय
राजस्थानी रा पैलड़ा तीन उपन्यासां “कनक सुंदर”, “चंपा” अर “आभै पटकी” री
लेखक गाथा गावै। इण निबंध मांय निबंधकार आं उपन्यासां रै कथासार री सावळ
विगतवार जाणकारी देवण रौ साथै-साथै कमी-बेसी माथै टीप राखै। इण निबंध रा
कीं अंस हटा देवां तो ओ इण विसय माथै पुखता निबंध मान्यो जाय सकै। निबंधकार
नै आज तांई री उपन्यास-जातरा बाळसाद लखावै आ बेजा बात है। निबंधकार लिखै-
“बियां भी राजस्थानी जैड़ी पोल दूजी किणी भासा मांय मिलणी मुस्कल ई होसी,
अठै जे कोई हळदी री गांठ सूं मोटो पंसारी बाजै तो आपां रो कांई लेवै?
राजस्थानी उपन्यास री जात्रा अर हिंदी उपन्यास री जात्रा मांय कोई पचासेक
बरसां रो फरक है, पण क्वांटिटी अर क्वालिटी देवां मांय इण फरक री छैती
कित्ती लांबी बधती जाय रैयी है, इण बात नै हर कोई सोच सकै। करड़ी छाती कर’र
आ कैय देवां रो कांई माड़ी बात होसी कै राजस्थानी रो पैलड़ो काळजयी
उपन्यास ओजूं किणी लेखक रै विचार-गरभ मांय ई है। ठाह नीं बारै रो च्यानणो
उणरै नसीब मांय है कै नीं।” (पेज-२०)
काळजयी उपन्यास अर लेखक रै राजस्थानी उपन्यास बाबत इण राय बाबत
सहमत-असहमत होयो जाय सकै। अठै सवाल ओ है कै बाळसाद अजेस चालू है तो इण
जातरा रा आगला तीन उपन्यासां माथै ई बात क्यूं करीजी? अर जे बाळसाद री बात
करां तो समूळी उपन्यास जातरा माथै इण ढाळै री टीप इण निबंध मांय क्यूं? ओ
तो न्यारो निबंध रो विसय है। जिण ढाळै पोथी मांय कहाणी माथै दोय निबंध है
उणी ढाळै उपन्यास माथै दोय निबंध राख्या जाय सकता हा। सुरग सिधारिया मानीता
तीन उपन्यासकार नै पोल मिली का उण पाछली पीढी नै, हळदी री गांठ सूं मोटा
पंसारी बाजणिया कुण है? निबंधकार खुलारो कोनी करियो। अन्नाराम सुदामा,
यादवेंद्र शर्मा “चंद्र”, करणीदान बारहठ, सीताराम महर्षि, बी. एल. माळी
“अशांत”, देवकिशन राजपुरोहित, देवदास राकावत, अतुल कनक, भरत ओळा आद रै
उपन्यासां सूं उपन्यास जातरा किणी ठावै मुकाम पूग रैयी है।
राजस्थानी री तुलना हिंदी का अंग्रेजी सूं कर’र खुद री गरीबी माथै फगत
हाय हाय करण री ठौड़ कीं बातां समकालीन उपन्यासकारां नै पोमावण खातर ई लिखी
जावणी चाइजै। निबंधकार रो ओ लिखणो कै “आपां रो कांई लेवै?” री ठौड़ फरज
बणै कै काळजयी उपन्यास ओजूं किणी लेखक रै विचार-गरभ मांय ई है तो उण लेखक
नै सोध’र घोदाय’र लिखवायो जावै। लिखवाण री आ भोळावण इण खातर कै निबंधकार
आपरै निबंध “राजस्थानी कहाणी : शिल्प अर संवेदणा” मांय विसय-विचार करतां
लिख्यो है कै “आलोचना रै अभाव रै कारण प्रयोगां री अति करणवाळा कहाणीकारां
नैं बरजण रो काम ई अठै नीं होयो।” (पेज-३६)
दूजै निबंध “राजस्थानी कहाणी परम्परा” मांय राजस्थानी गद्य रा आगीवाण
मुंहत नैणसी रै अवदान नै बखाणता निबंधकार खुलासो करै कै वां रो प्रभाव
भासिक अर सैली रूप मांय आधुनिक लेखकां मांय निजर कोनी आवै। आधुनिक काहाणी
जातरा रै लेखकां माथै प्रेमचंद अर शरत सूं प्रभाव अर लगाव री बात ई
निबंधकार लिखै। “हालांकै उण बगत ऐड़ै आदर्श लेखन री जरूत ही” (पेज-२५) इण
पछै कहाणी-जुग री बात माथै निबंधकार री थरपणा है कै पैलो वात काळ, दूजो
नृसिंह राजपुरोहित , तीजो सांवर दइया. चौथो मालचंद तिवाड़ी अर पांचवो भरत
ओळा। इणी बाबत निबंधकार रो ओ खुलासो दाखलै रूप देख्यो जाबणो चाइजै- “इण
भांत काळ विभाजन रै मुंडागै आ अबखाई आय सकै कै नृसिंह राजपुरोहित जुग कैयां
मूलचंद प्राणेस अर बैजनाथ पंवार नाराज होय सकै, सांवर दइया जुग सूं भंवर
लाल भ्रमर, मालचंद जुग कैया मीठेस निरमोही अर भरत ओळा जुग कैया रामेश्वर
गोदारा कै रामस्वरूप किसान नाराज हो सकै।” पैली बात तो ऐ बातां जे निबंधकार
रै हाथ है तो एक युग तो कहाणी में खुद आप रो ई राख लेवणो चाइजै हो। किणी
री नाराजगी री इत्ती फांसी बणै तो ओ काम करणो ई नीं चाइजै। पोथी रै समरण
पानै मांय लेखक किणी नै राजी कर सकै, उण पानै पछै जिको कीं होवै उण माथै
चरचा अर सवाल होया करै।
सवाल ओ है कै “राजस्थानी कहाणी परम्परा” मांय सूं बीस कहाणियां परंपरा
नै पूरी कियां दरसा सकै है? निबंधकार आखै राजस्थान रै कहाणीकार री फगत बीस
काहणियां टाळै। बीस मांय दोय खुद री, दोय मालचंद तिवाड़ी री, दोय मदन सैनी,
एक चंद्रप्रकास देवळ री, दोय भरत ओळा री, दो रामस्वरूप किसान री, दोय
सत्यनारायण सोनी री, री, दोय रामेश्वर गोदारा ग्रामीण री…..आद। आ जिकी
राजस्थानी कहाणी परंपरा री बात निबंधकार राखी उण नै जे निबंध रो नांव बदळ’र
बीकानेर-जोधपुर संभाग री कहाणी परंपरा कर देवां तो बात कीं बेसी बणती।
बीकानेर-जोधपुर संभाग सूं बारै री बात किणी बीजै निबंध मांय करता तो उणा
बाबत सावळ विगतवार जाणकारी मिलती। राजस्थानी साहित्य री परख करती बगत
जरूरी है कै आखै राजस्थान अर प्रवासी राजस्थानी रचनाकारां नै ध्यान मांय
राख्या जावै। उपन्यास रै बाळसाद माय प्रवासी लेखकां बाबत बात करीजी है। फगत
हलका अर खास क्षेत्र विसेस री बात सूं आपां री मूळ जूझ नै ठबक लागै। भासा
री मान्यता अर सगळा नै साथै लेय’र चालण री बात हरेक रचनाकार नै ध्यान मांय
राखणी पड़ैला। सगळा नै राजी करण खातर सगळा रा नांव आलोचना मांय कोनी लिख्या
जाय सकै पण परंपरा मांय दो कहाणी संग्रै अर गिणती री राजस्थानी कहाणियां
लिखण वाळा रै मौड़ बांधणा ई बेजा बात है।
“राजस्थानी कहाणी : शिल्प अर संवेदणा” विसय मांय “शिल्प” तत्सम सबद अर
“संवेदना” रो संवेदणा करणो उचित कोनी। कुंदन माली री पोथी रो नांव है-
“राजस्थानी कविता : शिल्प अर संवेदना”। अठै शिल्प खातर घणो फूटरो राजस्थानी
सबद “बुणगट” काम मांय लियो जाय सकतो हो। आं राजस्थानी निबंधां मांय
भासा-पख महताऊ है पण भासा बाबत कोई निबंध कोनी। निबंधकार री नाराजगी री बात
विचारतां म्हनै दिसा बदळ लेवणी चाइजै। सो टूकै मांय बस इत्तो ई कै पोथी
स्वागतजोग है पण आधुनिक साहित्य नै लेय’र उपन्यास, कहाणी अर कविता आद पेटै
लिख्या निबंधां री न्यारी पोथी राखणी ही। लोक साहित्य रा नाच-गाणा माथै
न्यारी छात्रोपयोगी पोथी आवणी चाइजै। आ पोथी पण छात्रोपयोगी है।
डॉ. नीरज दइया
=============================
इंदरधनख (निबंध संग्रै) / चेतन स्वामी
प्रकाशक : बालाजी प्रकाशन, फतेहपुर शेखावाटी / संस्करण : 2012 / मोल : 150/-
प्रकाशक : बालाजी प्रकाशन, फतेहपुर शेखावाटी / संस्करण : 2012 / मोल : 150/-
=============================
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें