इक्कीसवीं सदी री टाळवीं पोथी / नीरज दइया

राजस्थानी कविता में पैलो लांठो बदळाव मौखित परंपरा सूं लिखित रूप में कविता रो ढळणो हो। आज आपां कविता में दूजो लांठो बदळाव इंटरनेट री धमक पछै देख सकां। ओ कविता रो तीजो दौर है जिण में कविता आपरै नुंवै सरूप में चितरामां रै उणियारै नुंवै-नुवै दीठावां री जुगलबंदी कर रैयी है। बगत रै साथै आगै बधण वाळा कवियां में एक नांव ओम पुरोहित “कागद” रो है। “आंख भर चितराम” कविता-पोथी इक्कीसवीं सदी री टाळवीं पोथी इण सारूं मानीजैला कै कवि ओम पुरोहित “कागद” आपां सांमीं जाण्यां-अणजाण्यां जिकां चितराम राख्या है बै बुणगट में साव नुंवा है। आपरी भासा अर रचाव रै पाण कवि राजस्थानी कविता रो एक इसो आंटो काढ्यो है जिको आज रै जुग री जरूरत है। कमती सूं कमती सबदां में कविता रचणी अर उण पछै ई भासा में लय नै साधणो घणो अबखो काम मानीजै, आ खासियत जाणै कवि नै इण कविता-संग्रै री अमूमन सगळी कवितावां में किणी वरदान रूप हासल हुयोड़ी है। ओम पुरोहित “कागद” री कविता में राजस्थान री धरती आपरै रूपाळै रंग-रूप में सज-धज उतरी है। कवि आपरै आसै-पासै रा दीठाव रचती बगत जिका चितराम कविता में कलम सूं कोरिया है बै आपां रै अठै री धरती सूं जुड़्या थका नै घणा रूपाळा लखावै जैड़ा है। अठै री धरती माथै बिखरी छटवां नै कवि हियै सूं अंगेजी है। कवि आपरी कलम री कोरणी सूं जिका चितराम रचण री आफळ करी है बै घणा मनमोवणा अर किणी मूंढै बोलतै रंगीन फोटूवां दांई कवितावां में आपां नै निगै आवै। लोक अर जन सूं जुड़ाव रा केई केई चितरामां भेळै काळीबंगा माथै लिख्योड़ी कवितावां री लड़ी इण पोथी री न्यारी निरवाळी ठौड़ बणावैला। पतियारो है कै झींणी संवेदना सूं सजी इण पोथी रो राजस्थानी कविता जातरा में जोरदार स्वागत हुवैला।
~डॉ. नीरज दइया
(पोथी माथै फ्लेप-1)
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पोथी- आंख भर चितराम (कविता संग्रै) ओम पुरोहित ‘कागद’
प्रकासक-बोधि प्रकाशन, जयपुर, संस्करण-2009, पाना-80, मोल-100/-
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