जिकी चिंतावां कवि मदन गोपाल लढ़ा री निजू
चिंतावां रै रूप में पोथी री कवितावां में प्रगटी है बै चिंतावां खुद कवि
रै साथै-साथै आखी पीढ़ी अर मानखै री चिंतावां रै रूप में देखी-परखी जाय सकै
। आं कवितावां में युवा कवि मन रा केई केई खुणा-खचुणा आपां सामीं आवै तो
लखावै कै पीढ़ी कोई पण हुवो पण मानखै रा सुख-दुख जुदा-जुदा कोनी हुवै ।
आपां जाणां कै इण संसार में सुख-दुख रै आखती-पाखती ई केई जुदा रंग-रूप अर
लखाव हुया करै । कोई लढ़ा सरीखो हुनर वाळो कवि जद जीवण नै आपरी निजू आंख
सूं देखण ढूकै, तद उण नै इण मिनखाजूण में केई-केई अबखायां दीसै अर कवि
कागज-कलम संभाळै । इण मिनखाजूण रा केई जाण्या-अणजाण्यां न्यारा-न्यारा पख
कविता में ढाळती बगत कवि लढ़ा री आ चतराई साफ-साफ देखी जाय सकै कै कवि आपरी
निजू ओळख रो आंटो सांधण री सांतरी खेचळ आपरी काव्य-भासा अर बुणगट रै पाण
कर रैयो है । राजस्थानी कविता में कथात्मकता रै गुण-दोस रै साथै-साथै निजू
सोच अर चिंतावां री आं कवितावां में नूंवी दीठ सूं अरू-भरू हुवां ।
चिंतावां री ओळ में नूंवी कविता रै आंगणै उतरी उण कविता री बात करां जिण
माथै पोथी रो नांव राखीज्यो है, आपां देख सकां हां कै माचै री दावण खींचण
री ओळी रै मिस कवि घर-परिवार-समाज रै साथै ताजमहल तांई कविता में पूगै ।
छेकड़ सिराणै राखी पोथी री बात करती बगत कवि कवितावां आधी बांचण री बात नै
अखरावै । ओ कवि रो आपां नै बां चिंतावां में सामल करावणो है । असलियत आ है
इण जूण में जिकी चिंतावां सगळा सूं पैली हुवणी चाइजै बै पछै क्यूं हुवै ?
कवितावां तो संग्रै में केई है अर बां री जुदा-जुदा खासियतां ई है ।
म्हैं अठै खास तोर सूं कैवणो चावूं कै कविता जिकी रो परस आपां आपां री
आत्मा तांई महसूस कर सकां, बां पसंद हरेक री न्यारी-न्यारी ई हुय सकै ।
जियां कवि री ओळ्यां है- थूं हांसैला/ म्हारी बातां नै/ गैलायां मान’र/ पण
देस नै जाणणै खातर/ दिसावरी घणी जरूरी हुवै/ बिंयां किणीं चीज नै आपां/
गमायां पछै ई तो सावळ जाणां…. आ सरल-सहज अर मन नै परस करण री खिमतावान
कविता है पण जरूरी कोनी कै सगळां नै दाय आवै । किणी नै इण कविता में घणी
माड़ी बात आ लखाय सकै कै कवि आपरै राजस्थान सूं ई इत्तो हेत-अपणेस क्यूं
दरसावै ? कवि खातर तो आखो देस ई व्हालो हुवै ! पछै कांई राजस्थान अर कांई
गुजरात ?
ओ कवि लढ़ा री कविता रो बो रंग-रूप है जिको आपां रै सुख-दुख रै
साथै-साथै उण रै असवाड़ै-पसवाड़ै री बात करण खातर मनां नै आखरां खातर आंख
अर पांख सूंपै । आ आं कवितावां री मोटी खासियत है ।
– नीरज दइया
(पोथी माथै फ्लेप-1)
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पोथी- म्हांरै पांती री चिंतावां (कविता संग्रै) मदन गोपाल लढ़ा
प्रकासक-मनुहार प्रकाशन, महाजन (बीकानेर), संस्करण-2009, पाना-86, मोल-120/-
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पोथी- म्हांरै पांती री चिंतावां (कविता संग्रै) मदन गोपाल लढ़ा
प्रकासक-मनुहार प्रकाशन, महाजन (बीकानेर), संस्करण-2009, पाना-86, मोल-120/-
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