मायड़ भासा रै रंग मांय कविता रो जोगी / नीरज दइया

       कवि प्रमोद कुमार शर्मा राजस्थानी अर हिंदी में प्रयोगधर्मी लेखक-कवि रूप आपरी ओळखाण राखै। एक सौ साठ छंद-मुगत कवितावां रो संग्रै ‘कारो’ राजस्थानी में नवो प्रयोग केई केई कारणा सूं कैयो जाय सकै। इण सूं पैली बरस 2005 में ‘बोली तूं सुरतां’ प्रकाशित हुयोड़ो। कविता रो सिरैनांव कविता नै सदा एक सींव मांय बांधै का बांचणियां नै तै सुदा दिसा अर दीठ देवै। ओ प्रयोग है कै कविता खुद अपनै आप मांय पूरण हुवै उण रो कोई सिरैनांव नीं करियो जावै का कैवां कै सिरैनांव री ठौड़ कविता नै किणी गिणती दांई माळा रै मिणियां री भांत पोथी मांय जचा दी जावै। सबदां री ई खुद री सीवां हुवै, जियां माळा कैवतां ई एक सौ आठ मिणियां री मनगत सुरतां मांय ढूकै। ‘कारो’ एक सौ साठ कवितावां री माळा का कैवां किणी गजरो का गुलदस्तै रूप आपां साम्हीं है।
       किणी कवि री कवितावां मांय घणै धीजै साथै आलोचना नै केई-केई बार संभाळ करता पूगणो चाइजै। सावचेती केई केई पाळा पेटै राखणी जरूरी हुया करै। जूनी आलोचना दीठ किणी पोथी नै फगत इकतरफा फैसलै रूप देखै-समझै। आलोचना एक गंभीर काम है अर किणी लेखक-कवि नै गळत ठैरावण री जगा खुद नै बीस बार जांच लियो जावणो जरूरी हुया करै। कविता, कहाणी, उपन्यास अर नाटक आद लिखणो एक बात हुया करै अर आलोचना दूजी बात। आ जरूरी हुवै कै हरेक रचनाकार पाखती आप री आलोचना-दीठ हुवै जिण सूं बो आपरी रचनावां नै जांचै-परखै पण आ जरूरी कोनी कै उण री बा दीठ आलोचक री दीठ दांई हुवै। आलोचक री आपरी दीठ हुवै अर किणी मायनै मांय आलोचना खुद रचना हुवै। आलोचना किणी पण रचनाकार नै उण री लारली रचनावां अर अवदान भेळै उण री समकालीन रचनावां रै साथै मेळ देखता कूंत करिया करै। इण कूंत मांय मौलिकता, प्रयोग, बुणगट अर नवी दीठ पेटै रचनाकार रो नजरियो घणो मेहतावूं हुया करै। 
        पोथी रै सिरैनांव ‘कारो’ बाबत कीं कैवूं उण सूं पैली ऊमरा काव्य री ऐ ओळ्यं देखो- “दिन रात दार कारा करै / बै है कळैजा बीच रै। / जो पैला हूं जागतौ, / नेड़ौ न जातौ नीच रै।
       दूजो दाखलो बांकीदास री ख्यात सूं- “झारौ सिरहर डूंगरां / कारौ वेकाणंह। / मांझी खेंगौ वंकड़ौ / नमै न सुरताणांह॥
       पद्मश्री लालसजी रै कोस में कारो रो अरथ है- कळै, झगड़ौ-फसाद, निंदा अर ओळमौ। पोथी में कारो सबद जिण कवितावां मांय आयो है वठै अर कवि री मनगत सूं लखावै कै कारो इण जगती रै रोळै नै कैयो गयो है। बिना-मतलब री आवाजां हाको ई अरथ लियो जाय सकै पण राम जाणै कवि री असल मनगत कांई रैयी हुवैला, क्यूं कै इण पेटै किताब में कवि कीं नीं कैवै। ‘कारो’ संग्रै री कवितावां पेटै विचार करण सूं पैली दो-च्यार बां कवितावां री चरचा करणी चावूं जिण सूं आ कवितावां री भाव-भोम आवै। कवि कविता री चिंता आज रै सामाजिक संदर्भां बिचाळै करतो लिखै- “ओ भी कोई टैम है? / सबद उतरणै स्यूं करण लाग्या है मना / अर आत्मा सूख’र / समंदर स्यूं बणगी है बूंद / देश सोयग्यो है / देखतो-देखतो टेलिविजन / कुण पढसी कविता? / ओ भी कोई टैम है कविता पढण रो? (ओ टैम : पेज-77)
       दूजो दाखलो- “सबद / जद खोलै है आंख / तो हुवै है मुसाफरी मांय / मुसाफरी मांय / कुण करै विस्वास किण रौ? / अर साच्यांई / भासा स्यूं गायब हूग्यो विस्वास। (विस्वास : पेज-62)            
                प्रमोद कुमार शर्मा आपरै पैलै कविता संग्रै सूं दूजै तांई पूगता-पूगता भासा अर बुणगट मांय कविता मांय घणा सजग निजर आवै। अठै कवि सबद अर भासा माथै घणो ध्यान देय रैयो है। भासा सूं भाखा री जातरा कवि री कविता पेटै कमाई मान सकां।
       कारो री कवितावां बांच्या लखावै कै कारो असल में एक हेलो है जिको सबद अर भाखा रै केई केई दीठावां सूं देख्या-समझ्या भांत-भांत रै रंगां रा चितराम है। कारो असल में उण अणहद नै अरथावण री एक अरदास है, अरज है का कैवां खेचळ है। आ अरज-अरदास कवि सत्याप्रकाश जोशी री कविता- ‘सबदां सूं भारी तुल जाऊं / सबदां सूं मूंघो बिक जाऊं / सबदां में जीवूं मर जाऊं / सबदा रो आगोतर दीजै, ओ वर दीजै / मन री बातां सहज सुणाऊं, आखर दीजै।” री परंपरा में नवी बानगी कैयी जावैला। कवि लिखै- ‘सबद- डांडी है / हांडी है सै सूं पुराणी / खदबद करै जिण मांय भाखा।” सिव अर सांवरै रो सिमरण करतो छेकड़ मांय गणपति नै कवि आराधै- “हर बारणै ऊपर / बिराजो आप गणपति नाथ / -जोड़ूं हाथ” अर छेकड़ में ओळी आवै- “म्हारी मायड़ भाखा भी उडीकै / -आपरो साथ / -जोडू हाथ।” पैली पछै री सब बात छोड़ता थका कारो एक परकरमा है जिकी रो पूरो चक्कर निकाळा तो माळा में सुमेरू जोयां कोनी लाधै। आ एक इसी माळा है जिण मांय दावै जठै सूं आपां बात चालू कर सकां अर दावै जठै संपूरण कर सकां।
       कवि मोहन आलोक री कविता ओळ्यां देखो- “सबद में नई / साधना में / अरथ है। / अरथ सारू / सबद साथै / साधना री सरत है।” कारो रो कवि प्रमोद इण सरत नै पूरी पूरी मानता थको साधना करै, आराधना करै अर इणी खातर बो अरथ अठै मिलै जिको आपरै नवो नकोर रूप रंग मांय देख सकां। सबद मांय डूबणो का सबद मांय तिरणो कोई साधक ई संभव कर सकै अर कारो री कवितावां रै पाठ मांय जे इण ढाळै रो कोई लखाव बांचती बगत हुवै तो आ कवि अर कविता री सफलता मानी जावणी चाइजै। परंपरा अर छंद री बात साम्हीं कारो री कवितावां आपरी खुद री एक नवी परंपरा रचण री खेचळ करै।
       मूर्त अर अमूत चित्रकला री भांत अठै कागद रै कैनवास माथै सबदां सूं कीं मूर्त अर कीं अमूर्त चितराम आंख्यां साम्हीं कवि रचतो थको कीं मौलिक अर नवो अरथ री चावना बारंबार करै, करतो रैवै अर इण सीगै ओ पाठ खुद तैसुदा संभावानावां सूं आगै नवै लोक री जातरा करावै। चीनी चित्रकार पूरै कैनवास माथै नीं, उण री किणी कोर कूंट माथै थोड़ा सा मांडणा रंग-रेखावां सूं करिया करता उणी ओळ मांय अठै पूरै जीवण अर जूण री अबखायां साम्हीं कवि री कला निजू चिंतन-मनन अर चेतन-अवचेतन सूं जुड़ी धुन है जिण मांय कवि जोगी सो कविता नै सबदां मांय जोवै। जे कारो री कवितावां पेटै कैवां कै कवि मायड़ रै रंग मांय कविता रो जोगी बण्यो निजर आवै तो बात हाडो-हाड ढूक जासी। कविता में सबद सूं सबद री लय जोड़ण रा जतन है तो इणी जतन नै प्रयोग मान’र देखां तो करो कविता संग्रह सबदां नै अर कविता नै सींव सूं बारै देखण-समझण री जोरदार कोसीस। कारो री कवितावां बांचणिया री दुनिया अर अनुभव संसार री हेमाणी नै कठैई-कठैई राती-माती करै। दर्शन अर चिंतन नै नवै रूप रंग मांय देखण री जुगत री ऐ ओळ्यां दाखलै रूप-
“सरणाटो है / म्हारै हिड़दै री सींव चौफेर
पछै भी मांडू आखर ढाई आखर / झांझरकै पैली माळा फेर!
सूरज तो दीसै है / पण कांई दीसै है अंधेर!! (पेज-90)
       कवि जठै-कठै मांय-बारै इण अंधेर नै देखै सावचेत करै कै इण अंधेर नै देख’र ओळखा। अर फगत ओळखां ई नीं उण तांई सूरज नै पूगण रो मारग बणावा। सूरज आभै रो नीं आपां रै अर कवि रै ढाई आखरां रो सूरज है। बां कवियां नै कारो री कवितावां अवस बांचणी चाइजै जिका फगत कविता रै परंपरागत कारोबार नै एक बंधी बधाई लीक अर रीत में जाणै-पिछाणै। कवित रै कारोबार साम्हीं प्रमोद कुमार शर्मा रो कारो नै अंगेज’र देखण-समझण री दरकार है। कारो रै कवितावां अर कवि रै ढाई आखरां नै घणा-घणा रंग। राजूराम बिजारणियां नै ई आवरण खातर घणा-घणा रंग।
-नीरज दइया
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कारो (कविता संग्रै) प्रमोद कुमार शर्मा
प्रकासक- ज्योति पब्लिकेशन्स, बीकानेर, संस्करण-2013, पेज-168, मोल- 250/-
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