अेकठ जिका केई-केई रंग भेळा / नीरज दइया

मधु आचार्य ‘आशावादी’ प्रयोगधर्मी गद्यकार मानीजै। आप रै उपन्यास अर कहाणी-कला री बात करां तो कैयो जा सकै कै आप रा उपन्यास, उपन्यास जिसा उपन्यास कोनी हुवै। विधावां रा बण्योड़ा अर चलत रा चलतऊ खांचा सूं न्यारो-निरवाळो रूप लेवती आप री रचनावां मांय केई प्रयोग ओळख सकां। ‘आडा-तिरछा लोग’ उपन्यास रो सूत्र अेक कहाणी दांई है। ओछै काल-खंड री दीठ सूं छोटै-सै बगत मांय मोटी बात नै परोटण री खेचळ मिलै। उपन्यास रो खास पात्र पटवारी काण-कायदै आळो अर बडेरा री सीख माथै लैण सूं चालण वाळो पात्र धुरी रूप मिलै।
      उपन्यास रा च्यारूं भाग जाणै च्यारा न्यारी-न्यारी कहाणियां कैवै। आं नै असल मांय च्यार बिंब का कथ्य-रूपक ई मान सकां। च्यारू कहाणियां आपस मांय रळ परी जिण दुनिया री सिरजणा करै उण मांय आडा-तिरछा लोगां नै सीधा-सट्ट करण री कामना तो दीसै ई दीसै, साथै-साथै उपन्यास केई-केई सवाल साम्हीं राखै। किणी पण जातरा का जूण खातर हरेक नै खुद रै मारग री पिछाण पण जरूरी हुवै। मारग केई हुवै अर अेकठ केई मारग साम्हीं आयां हरेक नै खुद रै मारग रो वरण करणो पड़ै। आडा-तिरछा लोगां रा मारग सेवट खूट जावै अर वा नै कोई मजल नीं मिलै। आडा-तिरछा लोगां री बानगी फगत संकेत रूप निजर आवै। अै चरित्र अर पात्र अेक पूरै वर्ग नै अरथावै।
      आ इण उपन्यास अर उपन्यासकार री आ सफलता मानीजैला कै बो जिण दुनिया नै रचै, उण रचाव मांय अेकठ जिका केई-केई रंग भेळा करै, वै रंग जुड़ता-जुड़ता रंगां रो अेक कोलाज बणावै अर उण सूं जिको पूरो अेक चितराम साम्हीं आवै। इण चितराम मांय आपां रै आसै-पासै री दुनियां रा उणियारा चिलकै। आकारा री दीठ सूं ‘आडा-तिरछा लोग’ लघुउपन्यास-सो दिखै पण इण नै महाकाव्यात्मक-उपन्यास बणावै इण मांयला केई-केई घटना-प्रसंग अर संकेत-संदर्भ। जूण रा जिका चितराम इण महाकाव्यात्मक उपन्यास रै मारफत साम्हीं आवै वै आज रै बगत नै अरथावतां चीलै चालती मिनखाजूण नै बिडदावै अर रंग सूंपै।  

      उपन्यास रै पैलै भाग मांय सासू-बहू री बंतळ जिण नाटकीयता सूं खुलती जावै वा असल मांय गूंगै हुवतै संबंधां नै सूत्र देवै कै किणी पण समस्या रो समाधान सेवट बतंळ सूं ई संभव हुय सकै। उपन्यास मांय खुद उपन्यासकार बिना कीं कैयां ओ लाखीणो साच थरप देवै। जे बगतसर आडा-तिरछा लोगां री ओळख नीं करीज सकैला तो कमला, राधा अर उण री छोरी जिसी अबलावां नै आत्महत्या करणी पड़ैला। उपन्यासकार रो मिनखां पेटै ओ सोच आं ओळ्यां मांय देखां- “दो हाथ, दो पग, आंख्यां अर सरीर री दूजी सगळी चीजां ही, इण खातर मिनख तो हा ई सरीर सूं। पण जद उणां रै विचार अर वैवार माथै सोचूं तो मिनख आळी बातां नीं दीसै।” (पेज-59) मधु आचार्य ‘आशावादी’ मिनख री परख विचार अर वैवार सूं करण रा हिमायती कैया जा सकै। चावा-ठावा उपन्यासकार देवकिशन राजपुरोहित उपन्यास रो फ्लैप मांडता लिखै- “उपन्यासकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ आपरी सोझीवान दीठ सूं कथापात्रां रो चरित्र-चित्रण करता थकां भ्रष्टाचार अर बेईमानी नै ठौड़-ठौड़ै भांडै, तो सागै ईमानदारी री सरावणा करण सूं ई नीं चूकै। भूड़ै अर भलै रो भेद भी ओ उपन्यास आछी तरै अरथावै।”
-नीरज दइया
  
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आडा-तिरछा लोग (उपन्यास) मधु आचार्य ‘आशावादी’
प्रकाशक- ऋचा (इंडिया) पब्लिशर्स, बीकानेर ; संस्करण- 2015; पृष्ठ- 96 ; मूल्य- 150/-
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