जमीन अर मिनखाजूण सूं जुड़ाव री कवितावां / नीरज दइया

डॉ. जितेन्द्रकुमार सोनी पोथी ‘रणखार’ री कवितावां बाबत की लिखण सूं पैली म्हैं किणी युवा कवि री कविता-जातरा पेटै बात करणी चावूं। आ अचरज री बात कोनी कै म्हैं किणी युवा कवि री पैली कविता पोथी भेळै कविता जातरा री बात कर रैयो हूं। असल मांय आ जातरा किणी युवा मन री कविता तांई पूगण री कैय सकां। राजस्थानी में कविता लिखण वाळा कवि हिंदी माध्यम का अंग्रेजी माध्यम सूं पढाई-लिखाई करै तद वां रै साम्हीं कविता लिखती वेळा जिकी परंपरा हुवै वा हिंदी-अंग्रेजी री अर थोड़ी घणी राजस्थानी री हुवै। अठै परंपरा रो अरथाव कविता रचण सूं पैली कवि साम्हीं कविता नै लेय’र विचार-धारावां अर न्यारी-न्यारी बै कावितावां अर कवि है जिका सूं कोई कवि प्रेरणा लेवै। जितेन्द्र कुमार सोनी का नीरज दइया साम्हीं कविता लिखती वेळा जिकी परंपरा ही का हुवैला बा तर-तर अध्ययन चिंतन-मनन सूं बदळती थकी आधुनिक सूं आधुनिक हुवती रैवैला। मानां कै हरेक मिनख पाखती आपरी उण री परंपरा हुवै पण सगळा री परंपरा एक सरीखी नीं हुवै। किणी ठोठ मिनख पाखती आखरां सूं उळधो रैया ई लोक री लांठी परंपरा हुवै। किणी कवि नै आपरी भासा अर रचना-विधा री परंपरा रै खातै देखण रो काम आलोचना करै। म्हैं कैवणी चावूं कै जे जितेन्द्र कुमार सोनी री कवितावां में नवो पळको दीख रैयो है तो उण साम्हीं हिंदी-अंग्रेजी-राजस्थानी री समकालीन कविता रो एक दीठाव है अर उण दीठाव साम्हीं आपरै हलकै री साहित्य साधना अर साहित्य जुड़ाव रा केई केई दीठाव है। आ पूरी भाव-धारा युवा कविता री परंपरा अर कविता रचाव री ऊरमा नै नवा रंग देवै।
      आज जद तकनीकी विकास रै समचै आपां साम्हीं घणा-घणा बदळाव साम्हीं आया अर उण मांय सगळा सूं मोटी खामी कै आ आखी सदी मसीन मांय बदळ रैयी है। इण अबखी बात अर विचार नै सोनी री कवितावां घणै ठीमर सुर में परोटै कै आदमी नै आदमी बणायो राखण रा केई केई जतन अर विचार कवि आपरी कवितावां में राखै। ‘रणखार’ री घणी कवितावां खुद कवि रै अनुभव सूं जलमी कवितावां है। सरकारी तंत्र मांय घणै काम बिचाळै कविता खातर बगत निकाळणो अर जिले में कलेक्टर रै रूप मांय काम करता थकां ई इण धरा रै एक एक आदमी री अबखायां नै जाण उण रो भीडू बण’र कीं करण री भावाना रा केई केई चितराम ‘रणखार’ री कवितावां में देख्या जाय सकै।
      ‘मंडाण’ रै संपादन री वेळा युवा कविया री कवितावां भेळै म्हैं जितेन्द्र कुमार सोनी री कवितावां बांची अर वां नै मंडाण रै कवि रूप सामिल करिया तद सूं ई म्हैं सोनी री कवितावां बांचतो रैयो हूं। सरल सहज भासा मांय मरम री केई केई बातां ‘रणखार’ री कवितावां मांय मिलै। कवि कवितावां मांय कोई सबद नवो-जूनो जाण’र सामिल नीं करै। कवि रै अंतस मांय एक गांव री जमीन अर बठै री लोक भासा रम्योड़ी है अर उणी भासा मांय कवि आपरै मन री बात कैवणी चावै। कवि रो मन दो बिंदुवां बिचाळै गति करै। एक ठेठ गांव री जमीन अर दूजो बिंदु आखै मुलक रै बदळाव री जाणकारी। आं सगळी जाणकारी विकास री मिनख रो मिनखपणो मारण नै आमदा है अर कवि उण बदळती दुनिया मांय मिनखपणै नै बचावण रो हिमायती है। इंकलाब अर सिरजण री सीरिज-कवितावां इण री साख भरै। जियां कै कविता ‘इंकलाब-3’ री ओळ्यां है- वर्चुअल बातां सूं  / सौरम नीं आवै / गरमास नीं मिलै / रिस्तां री  (पेज-11)
      अठै लिखी बातां री साख मांय आ ओळी देख सकां- ‘डर ओ ईज है कै / आवण वाळी / पीढियां नैं / कठैई सोध नीं करणो पड़ै / कै कींकर / रैय’र सैंदक आम्ही-साम्ही / कर लेंवता हा लोग / घरबिद री बातां ! (पेज-12)  इणी ढाळै ‘सिरजण-3' में कवि कविता लिखण-रचण री मनगत विचारै कै कविता लिख्यां सूं कोनी लिखीजै, वा तो आप मत्तै ढूकै अर कवि इण संसार में कविता रै बणी रैवण री आस ई इण कविता में पोखै।
      कवितावां में घर-परिवार अर समाज रा केई केई दरसाव-दीठाव है जिका एक’र आंख्यां आगै आयां सीधै हियै ढूकै जिसा है। जियां ‘उडीक’ कविता में एक यायवर परिवार री ओळूं में कवि आपरै विगत री हर करै। मोटी बात आ कै कवि री हूंस उण रै पाठकां तांई कवितावां रै मारफत पूगै। कवि नैं इण बात खातर ई रंग कै कवि आपरै पुरखां रै घर-परिवार संसार सूं अळधो रैयां ई सदा उण ओळूं मांय रंग मनावै। साथै ई वो आज जिण जमी माथै ऊभो है, उण जाळोर रै दिखणादै-आथूणै सिरै रणखार सूं ई आपरो उत्तो ई हेत-अपणायत लिया अंतस रा ऊजळा भावां नै लौकिक जुड़ाव साथै अंगेजै। संवेदनसील मन रै कवि जितेन्द्र कुमार सोनी नै संवेदना सूं भरपूर कवितावां रै मारफत राजस्थानी कविता-परंपरा में नवी दीठ सारू बधाई। आं कवितावां रै मारफत सोनी राजस्थानी री नवी कविता नै नवा रंग देवै। बदळतै बायरै अर बगत नै वै कवितावां मांय नवै रूप अर भंगिमावां साथै अरथावै दूजै सबदां मांय कैवां तो दूसरी परंपरा नै कविता इतिहास में जोड़ण रा जतन करै। एक ओळी मांय कैवां तो ‘रणखार’ री कवितावां नै आपां जमीन अर मिनखाजूण सूं आपां रै जुड़ाव री कवितावां कैय सकां।

- नीरज दइया
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पोथी- रणखार (कविता संग्रै) डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी
प्रकासक-बोधि प्रकाशन, जयपुर, संस्करण-2015, पाना-80, मोल-120/-
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4 टिप्‍पणियां:

  1. डॉ जीतेन्द्र कुमार जी सोनी साब रा रचना संसार बड़ो ही चोखो होणे के सागै सागै समाज रे वास्ते बोत ही उपयोगी है- डॉ प्रकाश सोनी मुम्बई/रतनगढ़ 9987691725

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