आधुनिक राजस्थानी कथा-साहित्य रै मूळ सुरां री बात करां तो एक खास सुर
अबला-जीवण रै दुख-दरद नैं बखाणती रचनावां रो मिलै। कहाणीकार छगनलाल व्यास
इणी परंपरा मांय आपरै इण नुंवै कहाणी संग्रै मांय नारी-जीवण रै सुख-दुख नैं
जाणै मूळ-सुर रूप पोखै-परोटै। नारी घर-परिवार अर समाज रो आधार मानीजै। इण
संग्रै री कहाणियां मांय पूरो घर-परिवार अर समाज रो रूप आपां सांम्ही इणी
खातर सांम्ही आवै कै आं कहाणियां मांय नारियां रै न्यारै न्यारै रूप-रंग नै
कहाणीकार सांम्ही लावण रा जतन करिया है। व्यास री ऐ कहाणियां आधुनिकता री
आंधी रा केई चितराम कोरै जिका बदळतै समाज री दुनिया मांय आपां नै आपां रै
आसै-पासै मिलै। स्यात ओ ई कारण है कै आं कहाणियां सूं बांचणिया पाठ पछै जुड़
जावै।
आं कहाणियां मांय लोक आपरै पूरै सामरथ साथै बोलै। ऐ कहाणियां आपरै लोक
री कथावां कोनी लोक री कहाणियां है। असर मांय कथा अर कहाणी रो झींणो फरक ओ
है कै लोक री आपरी सींव हुवै अर कहाणी बंधण मुगत। लोककथा सूं मुगत आं
कहाणियां मांय बात कैवण-सुणण रो रिस्तो बुणगट रै आंटै रंजकता साथै ठौड़-ठौड़
कहाणीकार परोटै। वो जथारथ नै कहाणी मांय ढळती बगत जाणै लोककथा री परंपरागत
बुणगट नैं तो काम मांय लेवै। संग्रै मांय केई कहाणियां मांय कहाणीकार व्यास
समाज नै सीख देवै। सीख देवण रै मिस रचीजी आं कहाणियां रो न्यारो मोल-तोल
करीजैला। अठै ओ लिखणो ई जरूरी लखावै कै आज री कहाणी मांय कहाणीकार रो किणी
सीख का भोळावण पेटै कहाणी नै पोखणी जूनी बात मानीजण लागगी।
कहाणीकार री भासा लोक सूं जुड़ी हुवण रो एक कारण आं कहाणियां मांय कीं
कैवण रो भाव अदीठ देख सकां। कहाणीकार री कहाणी मांय खुद री अदीठ हाजरी भाषा
मांय लुकियोड़ी देख सकां जठै लोक-मनगत नै साम्हीं लावण सारू बो किणी बात नै
असरदार बणावण खातर ओखाणां अर आडियां बरतै। आपरी दीठ पेटै इण ढाळै रै घणा
ओपता अर फबता ओखाणां अर आडियां हुवै चाहै कोई ओळी कहाणीकार कैवण रै भाव
मांय सुणावण पेटै रस लेवण लागै। ओ कहाणीकार रो आपरी कहाणियां साथै गाढो
जुड़ाव कैयो जाय सकै। किणी कहाणी सूं कहाणीकार रो खुद नै मुगत नीं कर सकणो
असल मांय कहाणी अर कथा रो एक भेद है। संगै मांय कथा अर कहाणी रै इणी आपसी
रिस्तै नै देख्यो जाय सकै। संग्रै री हर कहाणी जीवण सूं जुड़ी थकी आपां
साम्हीं जाणी-पिछाणी नुंवी-जूनी केई बातां कैवै, पण इण कैवण मांय कहाणीकार
रो कठैई-कठैई खुद रो बिचाळै बोलणो लोककथा कैवण री बाण नै पोखै।
“रगत” कहाणी खून रो महत्त्व बखावै, “मिनखजात” मांय स्वामी-भक्ति री बात
है तो गाडी उंतावळा हुय ना चलाओ री सीख ई मिलै, “तैतीसा” मांय छोरै नै
किडनेप करै भागण री कथा मिलै तो “गोमती” सूं लुगाई जीवण री विपदावां रो
हिसाब ठाह लागै। “हाथ-पाणी” कहाणी बाल-विवाह रै विरोध मांय सुर उगेरै,
“टाबर” मांय ओळाद नीं होवण सूं दुखी मायत दान रो माहतम उजागर करै तो
“पगफेरो” मांय आज रै समाज रा अंधविश्वास देख सकां। “लूट” कहाणी मांय अबखो
अबला-जीवण अर “चुप” मांय बाप बेटै अर मां रो मनोविग्यान नुंवै तरीकै सूं
कहाणीकार उजागर करै। “मां रो कमरो” कहाणी अफसर री मा रो मरण अर उण री जूण
गाथा कैवै तो “फूटरापो” मांय ब्याव भेळै सांम्ही आवतो धोखो अर दूसर ब्याव
रो प्रपंच देख सकां। “घरवाळी” कहाणी मांय पग री बेमारी अर पंडित हाडवैद रो
सस्तो इलाज देखण नै मिलै, “मम्मी” मांय मा री कमी अर जूण रो बिखरता केई
चितराम दीसै तो “नर्बदा नीर” मांय बाप-बेटै रै मारफत करणी अर भरणी रो पाठ
बांच सकां।
सार रूप कैवां तो कहाणीकार छगनलाल व्यास रै इण संग्रै मांय अबला-जीवण,
बाल-विवाह, अंधविश्वास, बांझपणो, करणी जिसी भरणी, लूण रो करज का अपहरण आद
री कथावां कहाणियां रै रूप मांय परोटण री सांवठी बानगी मिलै। बखाण मांय
सनसनी खेज कथावां मांय नुंवी धारा रा ऐनांण देख सकां तो कहाणीकार रो आपरी
भाषा अर कैवण मांय मुगध-भाव ई आपां रो ध्यान खींचै। कहाणीकार छगनलाल व्यास
नै उण रै इण चौथै कहाणी-संग्रै खातर मोकळी बधाइयां अर आ आस कै वै लगोलग
कहाणियां लिख’र कहाणी विधा मांय आपरी न्यारी ओळख कायम राखैला।
– नीरज दइया
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पोथी- पगफेरौ (कहाणी संग्रै) छगनलाल व्यास
प्रकासक-मनन प्रकाशन, खांडप (बाड़मेर), संस्करण-2015, पाना-112, मोल-125/-
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(पोथी री भूमिका रूप छप्यो आलेख)
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पोथी- पगफेरौ (कहाणी संग्रै) छगनलाल व्यास
प्रकासक-मनन प्रकाशन, खांडप (बाड़मेर), संस्करण-2015, पाना-112, मोल-125/-
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(पोथी री भूमिका रूप छप्यो आलेख)
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