राजस्थानी युवा कहाणी रो च्यानण पख / नीरज दइया

             राजस्थानी रा युवा कहाणीकार मदन गोपाल लढ़ा रै पैलै कहाणी-संग्रै “च्यानण पख” में आज रै बगत अर समाज रो साचो रूप दरसावती 17 कहाणियां देखी जाय सकै। डायरी शैली में लिख्योड़ी सिरै नांव कहाणी “च्यानण पख” एक इसी छोरी री कहाणी है जिकी बगत साथै समझदार अर सोझीवान बण जाणै स्त्री-विमर्श नै नवो मारग देवै। कहाणी नवी बुणगट रै साथै साथै घणी निजू आतमा नै परसै जिसी भासा मांय जाणै कोई जादू सो करै कै ओळी-ओळी बांचता बांचणिया ठेठ तांई बांच’र ई थमै।  अठै ओ पण उल्लेखजोग है कै ओ पाठ आपरी आधुनिकता, नवी कथा जमीन रै कारणै ई चित चढै, अर इण नै उत्तर आधुनिक जुग मांय आजादी रै नांव माथै नवै मारग चालती आप रो आपो संभाळती नवी छोरियां रै दिल अर दिमाग रै बदळतै रंग-रूप री जाणकारी सारू ई बांच सका। कहाणी ‘आफळ’ मांय अेक कहाणी मांडण री आफळ दिखावतै इण कहाणीकार नैं कहाणी-रचाव री रचना-प्रक्रिया री कहाणी कैयी जा सकै। आ कहाणी खुलासो करै कै किणी रचना सूं पैला किण भांत री सोचा-विचारी करणी पड़ै। लिखणो अंत-पंत वैचारिक हुवै अर कहाणी ‘दोलड़ी जूण’ दांई कोई पण रचनाकार अेकठ दोय जूण जीवै, आं दोनूं बिचाळै आपसरी मांय रस्सा-कस्सी ई चालै। किणी रचना पेटै उण रै आगै री विगत सोच’र चिंतन करणो लाजमी लखावै तो पाठक रूप घर-परिवार रा सदस्यां अर बीजा री ई आपरी केई केई चावनावां अर बात-विचार हुया करै।
            मदन गोपाल लढ़ा री आं कहाणियां में राजस्थानी जन-जीवण रा बां छोटा-छोटा पखा नै प्रमाणिकता सूं उभारण रो एक जतन कैयो जाय सकै, जिण सूं आपां सदीव घर परिवार अर आसै-पासै री जूण मांय आम्हीं साम्हीं हुवां। आं कहाणियां में कहाणीकार रो एक रचनाकर रै रूप में लेखकीय-संत्रास है तो साथै ई सामाजिक अंधविश्वासा अर रूढियां कानी तूटता मोह ई। घर, परिवार अर समाज रै अलेखू छोटै-मोटै घटना-प्रसंगां सूं कहाणीकार कहाणी किणी कथा रूप सुणावण री ठौड़ बां अनुभवां नै भासा रै मारफत हालता-चालता दौड़ता-भागता जूण जीवता दरसावै। सगळी कहाणियां में कहाणीकार कठैई न कठैई कोई सवाल तो साम्हीं राखै पण उण रो कोई पुखता अर एक जबाब कोनी मांडै, लागै जाणै किणी लखाव नै कहाणियां है जियां रो जियां ई दरसा’र उण रो जबाब बांचणियां नै खुद सोधण खातर हियै कोई दीठ देवै। “तिरस’ जिसी कहाणियां रै मारफत लढा इंटरनेट री क्रांति रो अेक दीठाव रंजकता साथै राखै तो आपरी सगळी कहाणियां री भासा में तार-तार हुवतै साच नैं साम्हीं लावण रा जतन करै।
            संग्रै री कीं कहाणियां में नवा प्रयोग ई करीज्या है। अठै कहाणी नै न्यारा न्यारा टुकड़ा मांय अलायदा सिरैनांव राखता थका जाणै कोलाज सूं कहाणी मांय प्रयोग करै। इण दीठ सूं “आरती प्रियदर्शिनी री गली” अर “उदासी रो कोई रंग कोनी हुवै” खास उल्लेखनीन है। पोथी रै सिरै नांव कहाणी ‘च्यानण पख’ में डायरी शैलो रो प्रयोग है बठै ई युवा सोच अर संबंधां में लुगाई जात री ओळखाण अर आपै रो सवाल ई मेहतावू बण जावै। अठै बात करां कथेसर में छपी कहाणी “आरती अग्रवाल री गळी” री। उण कहाणी रो नांव बदळ’र संग्रै में अग्रवाल री ठौड़ प्रियदर्शिनी कर दियो है। कहाणी आकाशावाणी में हुयै किणी अजोगै कारनामै नैं उजागर करै, तो हेत रा ई केई रंगां नैं राखै। इणी ढाळै री अेक दूजी उल्लेखजोग कहाणी ‘उदासी रो कोई रंग कोनी हुवै’ मानी जावैला। बदळतो बगत अेक साच है अर आपां रै आसै-पासै रा दीठावां बिचाळै दौड़ती-भागती कहाणी नैं कागद माथै थिर करणी अेक कला है। किणी जथारथ सूं खवर बणै अर कहाणी ई बण सकै। किणी जीवतै-जागतै मिनख-लुगाई का विभाग सूं जुड़ी घटना सूं कहाणी लिखणो विवाद रो विषय बण सकै, आ विचारतां ई कहाणीकार व्यक्तिगत सींव सूं पात्र नैं बारै काढ’र आरती अग्रवाल नैं आरती प्रियदर्शिनी लिखण रो मतो करियो हुवैला।
            कहाणियां में देख्यो-सुण्यो-भोग्यो साच भेळै गोड़ै घड़ी वातां थका ई कहाणीकार जिण किणी घटना-प्रसंग नै बखाणै उण नै साच रै रूप चित्रात्मक-बिम्बात्मक भासा रै पाण हियै साच रै रूप पूगावण री खिमता ई राखै। आं कहाणियां में जुदा-जुदा कला माध्यमां जियां- चित्रकला, संगीत आद सूं जुड़ी जिंदगी मिलै। अठै आंचलिकता साथै उण रो मोटो फलक उल्लेखजोग कैयो जावैला। चित चढै जिसैआवरण अर चोखी छपाई रै पाण इण पोथी रै मारफत आपरी कहाणियां सूं लढ़ा समकालीन राजस्थानी युवा कहाणी नै जाणै च्यानण पख में लावै। 
– नीरज दइया
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च्यानण पख (कहाणी संग्रै) मदन गोपाल लढ़ा
प्रकासक- कलासन प्रकाशन, बीकानेर, संस्करण- 2014, पाना-80, मोल- 60/-
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