

“अरे अमीरजादै री औळादौ,
थांनै बेगीज मौत आवैली.... कमींणौ... ! म्हे तौ मरियोड़ा हां थे ई बेगा मरस्यौ...
म्हैं आज अठैई खोलस्यूं थांरी खोपर! म्हारा पईसा ई नीं छोड़िया रै मादर....।”
आ ओळी जिण मोटै साच नै
साम्हीं राखै उण मांय जवान हुवण वाळी पीढी रो फगत विद्रोह नीं है। एक छोरै रो भाठा
बगावणो अर दूजो रो देखणो केई साच कैवै। एक मोटै मेळै रै इण छेहलै सांच सूं आपां
आम्हीं-साम्हीं हुवां कै मिनख आदू साच रै साम्हीं हुवतां थकां ई सदा अणजाण रैवै। एक
पीढी आपरै साथै अर आवण आळी पीढी नै कांई सूंपै अर कांई सूंपणो चाइजै। एक ई बगत में
आपां साम्हीं केई केई चयन मौजूद हुवै, आ बगत परवाण मन री बात कै कोई हाथ ऊंचै उठै
अर कोई फगत उण नै देखण री मुद्रा मांय हुवणो आपरी नियति जाणै। पूरी कहाणी आपरै
बांचणियां नै घणी जूनी ओळी चेतै करावै कै ओ संसार एक मेळौ है। ओ संजोग है कै लेखक
रो उपनांव ‘मुसाफिर’ है।
अमूमन पोथी पेटै बात करतां
बिना आलोचकीय दीठ वाळा पारखी साथी रचनाकार रचनावां रो सार पाठकां नै बतावै, इण
कहाणी मांय ओ है का कांई है बो खुद बांचणियो बांच लेसी। जरूरत इण बात री है कै कला
अर परंपरा में किणी रचना नै देखां। राजस्थानी कहाणी परंपरा में राजेन्द्र शर्मा इण खातर जाणीजैला कै आप अबोलै
सबदां रा हरफ रचती ‘ओळमौ’ जिसी कहाणियां रची। ‘ओळमौ’ कहाणी में जितो कीं सबदां
मांय कहाणी कैवै उण सूं बेसी उण रो मून कैवै। कहाणी मांय मून री आपरी खुद री भाषा
है। कहाणी आपरै संकेतां मांय जिको की संजोवै बो बिना सबदां रै बांचणियां रै अंतस
पूगै। संकेत अर कहाणी में छूटती खाली जागां पाठकां रै मनां सूं घणी-घणी बंतळ करै।
कहानी ओळमौ में संजोग सूं
एक कुंवारी नायिका सुरभी नै एक इसै घरै रातवासो लेवणो पड़ै, जठै उण घर मांय फगत एक
अणजान मिनख रै अलावा दूजो कोई आदमी-लुगाई का टाबर नीं है। ओ अणजाण मिनख एक
जाण-पिछाण सूं बंध्योड़ो हुवता थका ई पूरी कहाणी में एक मोटी अबखायी रूप साम्हीं
आवै। बियां आ कोई अबखायी जैड़ी अबखायी नीं है, क्यूं कै इण आदमी अर सुरभी रै जीसा
में मित्रता रो संबंध है। जिको घणै भरोसै माथै टिक्योड़ो है। उणी घणै भरोसै रै कारण
बै दिल्ली सूं सुरभी नै एकली भेज देवै।
इण पूरी कहाणी में लागतो
रैवै कै भरोसो लीर-लीर हुय सकै पण बो भरोसो सेवट तांई साबत रैवै। कहाणीकार
राजेन्द्र शर्मा आपरै नायक कमल अर नायिका सुरभी रै नांव रै मिस जाणै कहाणी में कोई
खास अरथ आगूंच सूंपै पण बो झट करतो सावळ निगै नीं आवै। इण रो एक कारण स्यात ओ पण
है कै आपां आगूंच कीं थिर मानतावां रो चसमो लगा राख्यो है।
बुणगट मांय कहाणीकार सुरभी
रै मायतां री सगळी बातां अदीठ मून रै भरोसै रचै, ओ मून हरेक बांचणियै रै मन मांय
आपरी निजू भासा सूं संवाद रै रूप मांय ऊभो ई हुवै। असल में आ कहाणी एक आदमी अर
लुगाई रै संबंधां में प्रकृति नै अरथावण सूं बेसी इण जमी माथै धरम अर संस्कारां री
जड़ नै हरी दिखावण अर अडिग संस्कारां भेळै आपां री अतूट आस्था री कहाणी है। एक नर
अर नारी दो सरीर आपरै विवेक अर संस्कारां सूं त्याग रो जथारथ कहाणी में समझावै। जठै
एक रात अर मिनख-लुगाई रै किणी दार्शनिक साच सूं बेसी कळझळ करतै बगत मांय संस्कारां
नै बचावण पेटै कहाणीकार रो जतन घणो उल्लेखजोग है। बां रै डील रै मिलणै सूं बेसी,
बां रो नीं मिलणो अरथावूं अर समकालीन संदर्भां में घणो प्रेरक है। बगत घाप’र गळत
है पण स्सौ कीं गळत है आ अवधारणा खुद ई गळत है। रात रै अंधारै आ कहाणी नवी रोसनी
है, जिकी घणो भरसो दरसावै। कहाणीकार जाणै कहाणी रै मून में कैवै- बदळती दुनिया में
अजेस ई बेजोड़ चरित्र बच्योड़ा है। कहाणीकार कोई संदेस का उपदेस नीं दियां रै उपरांत
ई आपरै लूंठै साहित्यकार घरम नै घणी सावचेती सूं अठै निभावतो दीसै। इणी खातर म्हैं
म्हारो भरोसो राजेन्द्र शर्मा रै कहाणीकार माथै आगूंच दरसायो।
‘रुजगर’ कहाणी री बात करां
तो कहाणी रेल रै सफर रो दीठाव, जिण दौड़ती दुनिया रो प्रतीक है उण मांय बदळतै बगत
रा केई केई ऐनाण-सैनाण मिलै। बदळती इण दुनिया मांय आदमी रै मूळ नेम-कायदां माथै
सवाल उठावती आ कहाणी जिको कीं आंख्यां साम्हीं दरसावै उण सूं बेसी आंख्यां सूं
अळघो अदीठ में कठैई ओलै लुक्योड़ो राखै। ओ आपां रो नेठाव अर दीठ है कै उण अप्रगट
तांई कहाणी रै मिस पूगा अर उण नै प्रगट देखां। राजेन्द्र शर्मा री कहाणियां मांय
भाषा, चरित्र-वातवरण रै जिण संजोरै सरूप री बानगी मिलै उण रो एक दाखलो आ कहाणी है।
नवी दुनिया रा नवा चाळा नै दरसावण रो जतन करती कहाणी सगळी बातां नै दूसर नवै छैड़ै
सूं जांचण-परखण रो एक नजरियो हियै उपजावै। आपां साम्हीं आपां रा संस्कार अर जीवण
रा मूलभूत मूल्य अबै आज जिण नवी औसथा मांय पूगग्या है, बठै सगळी जूनी बातां अर
मान्यतावां ठीक कोनी। इण नवै बगत मांय आज रो मिनख केई केई रूपां-रंगां नै घरण कर’र
छळ-छदम करनै नै ठाह नीं किण रूप मांय साम्हीं आय ऊभै। आपां परंपरावां नै पोखता
कठैई कहाणी रै नायक दांई चोट नीं खावां। आ बगतसर आपां नै अखरावण री एक संजोरी
कहाणी है जिण मांय आगै आगै बांचण रो भाव अर हूंस ई उल्लेखजोग है।
जूनी कहाणी अर आज री कहाणी
जिण नै आपां आधुनिक कहाणी रै नांव सूं ओळखां उण मांय भेद कांई है? असल भेद कहाणी
रै रचाव अर कथ्य रै चुनाव-ट्रीटमेंट पेटै मान सकां। दाखलै रूप राजेन्द्र शर्मा री
कहाणी ‘हियै चांनणौ’ री बात करां। आ कहाणी किण घटना-प्रसंग-बात नै किणी ढाळै
मांड’र कैवै, तो आ सावचेती कहाणीकार री अठै आप देख सकां, पण पूरी कहाणी में आधुनिकता
रै दिखावै अर मिनख रै जूनै सुभाव मांय जिको द्वंद्व रचीजै बो घणो स्थूल रूप
साम्हीं आवै। इण सूं जुदा मन रै भावां री सूक्ष्मता सूं अबोलै साच नै भेळै रचण रै
मिस ‘ओळमौ’ कहाणी एक गीरबैजोग दाखलै इण खातर बणै कै बां सूक्ष्मता नै पकड़ै। कहाणी
‘हियै चांनणौ’ में मा-बेटै बिचाळै जिको कीं है उण नै कैवण अर नीं कैवण बिचाळै
द्वंद्व जरूर मिलै, पण जिण तरकीब सूं कहाणीकार एक मारग काढै बो किणी लोककथा का
गोड़ै घड़ियै साच सूं कमती नीं है।
‘एफ.आई.आर.’ कहाणी संवाद
शैली री कहाणी है जिकी संवादां भेळै मून नै रचै। संवादां रो ओ कोलाज पुलिस मैहकमा
भेळै आज रै मिनख अर समाज री असलियत नै राखै। ऊपर सूं नाटकीय बातां भेळै बदळती भाषा
बिचाळै बात नीं करण री मनगत अर आतमा री कळझण भेळै मिनखाजूण री संवेदनहीनता री आ
कहाणी है। किणी चोर रै साहूकार बण जावण री कहाणी ‘इन्हेलर’ है, जिण में चोर
साम्हीं एक इसो चितराम आवै कै उण री आखी जूण ई बदळ जावै। न्यारै न्यारै विषयां नै
परोटी संग्रै री दूजी कहाणियां ई बांचणजोग है।
सांस्कृतिक रंगां अर
संस्कारां सूं रची-बसी ‘मेळौ’ री कहाणियां मांय कहाणीकार पाखती कहाणी कैवण-सुणावण
रो सुभाव है। इण सूं इधकी बात बो उण बुणगट रो जाणीकार है जिण मांय भाषा रै मारफत
पूरै दीठाव नै रचण री नवी खिमता मिलै। संग्रै री कहाणियां मांय अबोलै सबदां नै
अंवेरण रो हुनर अर अदीठ नै ई आंख्यां साम्हीं करण री बानगी केई कहाणियां मांय
मिलै। म्हारो मानणो है कै आ खिमता ई राजेन्द्र शर्मा रै कहाणीकार अर राजस्थानी
कहाणी नै आगै बधावैला।
० पोथी : मेळौ ; विधा :
कहाणी ; लेखक : राजेन्द्र शर्मा ‘मुसाफ़िर’ प्रकाशक : बोधि प्रकाशन,
जयपुर ; संस्करण : 2015 ; पाना : 112 ; मोल : 90/-
राजस्थानी साहित्य री कई विधावां में तेज गति सूं सिरजण करण वाळा भाई नीरज दइया री खिमता सरावण जोग है. खुद रै सिरजण साथै ई दूजां री पोथियाँ बांच नै इत्तो लिखणौ अर अंतरजाळ माथै मायड़ भासा नै मान दिरावणौ दो’रो काम है. लखदाद है आपनै
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