डॉ. मंगत बादल सदा नवी लीक खींची


बात स्यात सदां बण जावै, रचना कदै-कदास।कवि रो सुभाव हुवै बात करणो, पण रचना रो सुख कदै-कदास मिलै। डॉ. मंगत बादल रोज कवितावां कोनी लिखै। कविता लिखण खातर कविता कोनी लिखै। जद कविता कदै कदास आवै बै कविता नै रचै। डॉ. बादल री सिरजण-जातरा रा अजेस केई-केई मुकाम आलोचना री ओळख सूं बारै है। इण रो एक कारण ओ मान सकां कै बै खुद री मौज में विविध विधावां में बरसां सूं लिखता-छपता रैया है। ओ काम किणी खुद रचनाकार रो नीं हुवै कै बो आलोचना नै आपरी ओळख करावै? लेखक तो जद रचना हियै आवै, लिखतो जावै।
            ‘लीक ना पकड़ भाया, लीक छोड़! लीक। / लीक छोड़ चालै जिका, बां में हो सरीक।डॉ. मंगत बादल लीक छोड़र लगोलग लिखता गया, तो एक दिन आयो जद राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर रो सर्वोच्च पुरस्कार महाकाव्य दसमेसखातर मिल्यो। भळै एक दिन आयो कै साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली रो सर्वोच्च पुरस्कार महाकवि मंगत बादल नै मीराखातर मिल्यो। आप सदा नवी लीक खींची अर इणी सीगै आ पोथी- इतरा हुया सवालनै देखी जावणी चाइजै।
            ‘म्हैं तो हां झुणझुणियां भाया, / जिको बजासी बाजस्यां।जैड़ै गीतां री खासियत आ कै कवि जित्तो कीं कैवै बो बीज रूप हियै ऊंडै पूगर नीं कैयोड़ै अर रैयोड़ै सवालां नै साम्हीं लावै। लारलै कीं बरसां में रच्या आं गीतां-नवगीतां अर गजलां में जूण रा केई केई सांवठा चितराम है। आं रचनावां री खासियत कै नवा प्रतीक अर बिम्ब रचतो कवि लय अर नाद सैंदर्य नै रचना में साधतो जावै। कवि आं रचनावां रै पाण आखी मिनखाजूण नै नाद अर सौंदर्य सूं साधणी चावै। अठै कविता रै मिस मिनखाजूण अर उण सूं जुड़िया सवालां रो रचाव देख सकां। घर-परिवार, गांव-शहर साथै जूण साम्हीं प्रकृति अर भौगोलिकता रो रचाव ई जसजोग है।
            डॉ. मंगत बादल रो सुमधुर पाठ प्रभावित करै, अर इण संग्रै इतरा हुया सवालरी काव्य-रचनावां री सगळा सूं सबळ बात सहजता, सरलता, गेयता अर हियै ढूकती भाषा है, कठैई अटकाव-भटकाव कोनी। जटिल हुवतै जीवण में कवि कवि खुद अर बगत सूं संवाद रै पाण हरावळ बण बांचणियां नै हुंकारै भेळै साथै टोर लेवै। बो इण धरा अर अठै सूं जुड़ी केई केई बातां करतो सकारात्मक सोच में संस्कृति अर लोकतत्त्वां री अंवेर करै। 
- डॉ. नीरज दइया






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